रांची: झारखंड के सरायकेला में नक्सली हमले में अपने शहीद जवानों का बदला लेने के लिए राज्य पुलिस नक्सलियों के खिलाफ पुलिस निर्णायक लड़ाई लड़ रही है. यह लड़ाई अब वैसे इलाकों में चल पड़ी है जहां पुलिस के लिए पहुंचना काफी मुश्किल है. क्योंकि नक्सलियों ने अपने बचे खुचे इलाकों की जबरदस्त किलेबंदी की है. जोरदार बरसात इस काम में नक्सलियों के लिए सहायक हो रहा है. वहीं यह बरसात नक्सल ऑपरेशन में लगे जवानों के लिए आफत बना हुआ है.
वज्रपात, मच्छर और सांप से परेशान हैं जवान
बरसात में जंगलों के बीच मलेरिया, आसमानी बिजली और सांप- बिच्छू से बचते-बचाते जवान नक्सलियों को सबक सीखा रहे हैं. हालांकि जंगल में जवानों को नक्सलियों से कम मलेरिया के मच्छरों से ज्यादा डर लगने लगा है. यही कारण है कि नक्सल अभियान के दौरान जंगलों में नक्सलियों से खुद को बचाने के साथ-साथ मच्छरों से बचाव के कई उपाय करने पड़ते हैं. बरसात के मौसम में जंगल में अभियान चलाने के दौरान जवानों को कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. इस दौरान नदी में पानी बढ़ जाता है, जिसके बाद जवानों को नक्सलियों के बिछाए गए लैंडमाइंस से होकर गुजरना पड़ता है.
बिजली कड़कने से लैंड माइंस में हो जाता है विस्फोट
बरसात का मौसम जवानों के लिए केवल आफत लेकर ही आता है. एक तो उन्हें अक्सर वज्रपात का खतरा बना रहता है. इस दौरान अगर लैंड माइंस वाले इलाके में वज्रपात होता है तो लैंडमाइंस अपने आप विस्फोट हो जाता है. इसमें भी जान जाने का खतरा बना रहता है. इसके अलावा बरसात के मौसम में शाम होते ही नेटवर्क की समस्या भी खड़ी हो जाती है. इस दौरान जवान किसी से संपर्क नहीं कर पाते हैं.
तड़ित चालक बेअसर
जवानों को वज्रपात से बचने के लिए तड़ित चालक दिया गया है. लेकिन जंगल में वह भी काम नहीं करता है. पिछले साल पलामू में वर्जपात से 5 कोबरा के जवान बुरी तरह से जख्मी हो गए थे.