रांचीः झारखंड में अभी सवा तीन लाख से ज्यादा लोगों को कोरोना वायरस संक्रमित कर चुका है और इसकी जद में समाज का हर तबका आ चुका है. यह जानकर आपको हैरानी होगी कि आज की तारीख में भी समाज का एक वर्ग ऐसा है, जिसे विश्वास है कि उनलोगों को कोरोना नहीं हो सकता, ये वर्ग है पशुपालकों का. जिन्हें विश्वास है कि गाय-भैस के पास रहने उनकी सेवा करने से कोरोना का संक्रमण नहीं होता है.
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क्या कहते हैं पशुपालक
क्या वास्तव में पशुपालकों को कोरोना का खतरा नहीं होता है, ऐसी सोच पशुपालकों में है. इसे परखने के लिए ईटीवी भारत की टीम धुर्वा के पशुपालकों के बीच गई. जहां अपने पशु धन के पास बिना किसी खौफ के, बिना मास्क के रह रहे पशुपालकों की पूरी फैमिली को कोई डर नहीं. वहां बैठी एक महिला भोजपुरी में कहती हैं कि 'उधरे रही कोरोना वोरोना... आईजा नइखे... गाय माता ऐने न आवे दिहन ई बलाए...'
पशु पालक रामप्रवेश यादव कहते हैं कि हमारे खटाल क्या आसपास के इलाके में भी कोई बीमार नहीं हुआ है. यह बीमारी कॉलोनी और बाहर में ही दिख रही है. एक और दलील रामप्रवेश देते हैं कि हैं कि लोग सेनेटाइजर का इस्तेमाल करते हैं, पर यहां गौमूत्र सेनेटाइजर का काम करता है. हटिया के महेश राय ने कहा कि हमलोगों के पास कोई कोरोना नहीं होता है.
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यह सोच खतरनाक, विज्ञान इसे नहीं मानता- चिकित्सक
राज्य में आयुष चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. सचिदानंद सिंह ने कहा कि विज्ञान में ऐसी बातों की कोई मान्यता नहीं है. ऐसे लोगों के बीच जाकर जागरूकता लाने की जरूरत है, नहीं तो ये लापरवाही खतरनाक रूप ले सकता है. पशुओ के रखने के खटाल के आसपास कोरोना नहीं होने के विश्वास के सवाल पर डॉ. सचिदानंद ने कहा कि अगर ऐसा है तो यह रिसर्च का विषय है, पर कोरोना के बचाव के उपाय ही एक मात्र रास्ता है.
पशुपालको. में कोरोना नहीं होने की अवधारणा को तोड़ने के लिए जरूरी है कि स्वास्थ्य विभाग की टीम उनके पास जाएं और उन्हें बताएं कि गौपालन का कोरोना संक्रमण से कोई लेना देना नही है. इसलिए कोरोना गाइडलाइन का पालन करना और टीका लगाना बेहद जरूरी है.