रांची: झारखंड में हुए धान खरीद घोटाले की जांच अब नए सिरे से सीआईडी के द्वारा की जाएगी. झारखंड के डीजीपी डीके पांडेय ने धान खरीद घोटाले के सभी कांडों का अनुसंधान सीआईडी से कराने का आदेश जारी कर दिया है. इस मामले को लेकर झारखंड हाईकोर्ट ने भी कड़ी टिप्पणी की थी.
करोड़ों का घोटाला
प्राथमिक कृषि सहकारी साख समिति यानी पैक्स के जरिए धान खरीद में करोड़ों का घोटाला सामने आया था. गृह विभाग ने इस संबंध में झारखंड पुलिस मुख्यालय से रिपोर्ट मांगी थी. बता दें कि झारखंड हाईकोर्ट में धान खरीद घोटाले में झारखंड के अलग-अलग जिलों में दर्ज कांड के अनुसंधान पर गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा था कि क्यों न इस पूरे मामले की जांच सीबीआई से करवाई जाए.
क्या है पूरा मामला
झारखंड में पैक्स के जरिए धान खरीद में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी हुई है. धान खरीद घोटाले में राज्य के हजारीबाग, गोड्डा, देवघर, जामताड़ा, दुमका, पाकुड़ समेत अन्य जिलों में एफआईआर दर्ज हैं. लिट्ठीपाड़ा थाना में दर्ज कांड संख्या 39/17 में आरोपी बाहुल मंडल ने जमानत के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी.
हाईकोर्ट ने गड़बड़ी पकड़ी
जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने गड़बड़ी पकड़ी. हाईकोर्ट ने इस मामले में टिप्पणी करते हुए कहा था कि धान खरीद घोटाले में सरकारी फंड का बड़ा दुरूपयोग हुआ, बावजूद इसके पुलिस ने सिर्फ आईपीसी की धारा 406, 420 में एफआईआर दर्ज की. केस के अनुसंधानकर्ताओं ने सही तरीके से अनुसंधान नहीं किया और न ही जांच में कांड से जुड़े जरूरी तथ्य ही जमा किए गए. अधिकांश मामलों में बगैर सही और सटिक अनुसंधान के पुलिस ने चार्जशीट भी जमा कर दिया.
गृह सचिव को देना होगा शपथ पत्र
झारखंड सरकार के गृह सचिव एसकेजी रहाटे से हाईकोर्ट ने पूरे मामले में शपथ पत्र की मांग की है. शपथ पत्र के जरिए गृह सचिव को बताना होगा कि क्या वह पुलिस के अनुसंधान से संतुष्ट हैं या राज्य की एजेंसियां ऐसे मामलों में जांच के लिए कारगर नहीं हैं. हाईकोर्ट ने गृह सचिव से यह भी पूछा है कि क्या सरकार इस मामले की जांच सीबीआई से कराना चाहेगी, क्योंकि इस मामले में सरकार के करोड़ों के फंड का दुरूपयोग हुआ है. साथ ही इस घोटाले में सरकारी कर्मियों के साथ-साथ निजी लोगों की भी संलिप्तता है.
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सरकारी फंड में अनियमितता पर नहीं लगा पीसी एक्ट
सरकारी फंड में अनियमितता और सरकारी कर्मियों की संलिप्तता के कारण दर्ज एफआईआर में प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट के तहत भी एफआईआर दर्ज की जानी थी. लेकिन मामुली धाराओं में एफआईआर और चार्जशीट के कारण आरोपियों को राहत मिलने की गुंजाइश बढ़ गई.