रांची: मौजूदा दौर में तकनीक का कितना भी इस्तेमाल हो रहा हो बावजूद उसके पारंपरिक रूप से इस्तेमाल होने वाली प्रचार सामग्रियों की पूछ अभी भी बरकरार है. इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक तरफ बड़े राजनीतिक दलों के कार्यालय में उनके प्रचार सामग्रियों से जुड़ा काउंटर तैयार है तो वहीं बाजार में भी कई ऐसी दुकानें सज गई है, जहां एक ही छत के नीचे अलग-अलग राजनीतिक दलों की प्रचार सामग्रियां मिल रही है.
प्रचार सामग्रियों का अर्थशास्त्र
वैसे तो इलेक्शन कमीशन के निर्धारित पैमाने के अनुसार एक प्रत्याशी विधानसभा चुनाव में 28 लाख रुपए से ज्यादा खर्च नहीं कर सकता, लेकिन अगर प्रचार सामग्रियों का अर्थशास्त्र समझे तो अजीबोगरीब आंकड़ा सामने आएगा. कांग्रेस कार्यालय के काउंटर में 5 से लेकर 80 रुपए तक की प्रचार सामग्री मुहैया कराई गई है. वहीं बाजार में 10 से लेकर 100 रुपए तक की सामग्री आसानी से उपलब्ध है. पार्टियों के दावे को देखे तो एक अनुमान के तौर पर राज्य में 60 लाख से अधिक अलग-अलग दलों के कार्यकर्ता मौजूद हैं. अगर उनमें से आधे भी इन प्रचार सामग्रियों की औसत रूप से 50 रुपए की भी खरीदारी करते हैं तो ये आंकड़ा 15 करोड़ रुपए के आसपास होगा. ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि इससे कहीं ज्यादा रुपयों का खर्च प्रचार सामग्री में होता होगा.