हैदराबादः स्वदेशी आंदोलन स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा था. बदलते वक्त के साथ इसकी चुनौतियां बदल गई हैं और आंदोलन का स्वरूप भी नया रूप लेता जा रहा है. केंद्र सरकार ने मेक इन इंडिया के नारे के बाद लॉकडाउन के दौरान वोकल फॉर लोकल का नारा बुलंद किया है. ईटीवी भारत के रीजनल एडिटर ब्रजमोहन सिंह ने स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सहसंयोजक अश्विनी महाजन से खास बातचीत के दौरान इससे जुड़े तमाम पहलुओं पर चर्चा की.
अश्विनी महाजन से खास बातचीत पूर्ववर्ती सरकारों ने नहीं दिया ध्यान
स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सहसंयोजक अश्विनी महाजन ने कहा कि आजादी के बाद की सरकारों ने आत्मनिर्भरता को गंभीरता से नहीं लिया. पहले कहा गया कि पब्लिक सेक्टर की कंपनियां ही उत्पादन करेंगी, निजी सेक्टर को इससे दूर रखा गया. कोटा-लाइसेंस के दौर में कुशलता और क्षमता का विकास नहीं हो सका. इस मॉडल के फेल होने पर विदेशी कंपनियों और एफडीआई पर भरोसा जताया गया.
भूमंडलीकरण की खामियां सामने आई
अश्विनी महाजन ने कहा कि कोरोना काल में भूमंडलीकरण की खामियां सामने आईं. मास्क और वेंटिलेटर से लेकर तमाम चीजों के लिए विदेशों पर निर्भर होना सही नहीं. कोरोना ने हमारी आंखें खोल दी और जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि कोरोना ने हमें आत्मनिर्भर होना सिखा दिया. हम जो चीजें आयात करते हैं, उसे कम से कम आयात करना चाहिए.
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देश में 3 मूल समस्याएं
अश्विनी महाजन ने बताया कि गरीबी, भूख और बेरोजगारी देश की 3 मूल समस्याएं हैं. बेरोजगारी को दूर करने के लिए अपने देश में ही मैन्यूफैक्चरिंग को बढ़ावा देना चाहिए. सेवा और दूसरे क्षेत्र में रोजगार के अवसर कम हैं. उन्होंने कहा कि बाहर से आयात करने का मलतब है रोजगार के अवसरों को बाहर भेज रहे हैं.
विदेशों पर निर्भरता घातक
स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सहसंयोजक के अनुसार पिछले 30 सालों में देश में ऐसा ट्रेंड देखने को मिला है कि हम अपनी क्षमता विदेशों से आयात करके ही बढ़ा सकते हैं. वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन के चार फीसदी टैरिफ लगाने की नीति के बावजूद देश में विदेशी सामानों को डंप किया जाता रहा. हमने टैरिफ इतना कम कर दिया कि भारतीय बाजार चाइनीज सामानों से भर गए. इसे रोकने के लिए सरकार की ओर से कोई प्रयास नहीं किया गया. जब 2016-17 में आंदोलन शुरू किया गया तब जाकर सरकार इस मुद्दे पर गंभीर हुई. इसके बाद 40 से ज्यादा चीजों पर एंटी डंपिंग ड्यूटी लगाई गई. इससे चीन से स्टील और ऑर्गेनिक केमिकल का आयात 18 फीसदी कम हो गया. विदेशी सामान की डंपिंग होगी तो देश के उद्योग तो बंद हो ही जाएंगे. अमेरिका आयात होने वाले सामान पर 6 हजार तरह के नॉन टैरिफ बैरियर लगाता है जबकि भारत में सिर्फ 300 नॉन टैरिफ बैरियर्स हैं.
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आत्मनिर्भरता की ओर बढ़े कदम
अश्विनी महाजन ने कहा कि सरकार इस मुद्दे पर गंभीर हुई है इसलिए देश में क्षमता के विकास के लिए आर्थिक पैकज लाया गया है. ये सही है की रातों-रात देश में क्षमता विकसित नहीं होगी लेकिन धीरे-धीरे विदेशों पर निर्भरता को कम किया जा सकता है. अभी प्लानिंग की नहीं बल्कि इम्प्लिमेंटेशन की जरूरत है. अश्विनी महाजन ने अटल सरकार के दौरान आई एसपी गुप्ता कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर कहा कि देश में हर साल 1 करोड़ रोजगार का सृजन किया जा सकता है.
ग्रामीण क्षेत्रों में डेयरी, पशुपालन, मधुमक्खी पालन जैसे काम से रोजगार के अवसर बढ़ सकते हैं. गुजरात में इसका उदाहरण देखा जा सकता है. देश में करीब 700 इंडस्ट्रीयल क्लस्टर हैं, जिनकी अपनी-अपनी समस्याएं हैं. यहां उद्योग चलाने वालों से बात करके उनकी समस्याओं को समाधान किया जा सकता है. इससे उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है.
मजदूरों पर ध्यान देना जरूरी
देश की जीडीपी 10 गुना बढ़ गई लेकिन मजदूरों की आमदनी डेढ़ गुना भी नहीं बढ़ी. ये स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सहसंयोजक अश्विनी महाजन का मानना है. उन्होंने कहा कि किसानों और मजदूरों की हालत को सुधारना होगा. जो गांव लौट आए हैं, उनके लिए वहीं रोजगार की व्यवस्था करनी होगी. अश्विनी महाजन के अनुसार विदेशी कंपनियों को भी कुछ शर्तों के साथ उद्योग लगाने की मंजूरी मिलनी चाहिए. डोमेस्टिक प्रोडक्ट यहीं से खरीदने और यहां के बाजार पर कब्जा नहीं करने जैसी शर्तें होनी चाहिए.
कोराना काल में हर स्तर पर जागृति आई है. पहले के आंदोलनों में स्वदेशी जागरण मंच को लोगों का लोगों का आंशिक समर्थन मिलता था लेकिन ये एक ऐसा समय है जब विदेशी सामान का बहिष्कार हर कोई कर रहा है. एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार देश के 83 फीसदी लोग चीन और चाइनीज सामान के खिलाफ हैं. ये अच्छा वक्त है जब भारत को आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है. उन्होंने कहा कि पश्चिमी देशों द्वारा निर्धारित ग्लोबलाइजेशन से निकलने का वक्त आ गया है.