रांची: झारखंड सरकार के नए लोगो से जुड़ा अनावरण कार्यक्रम विवादों में आ गया है. विवाद न केवल कार्यक्रम को लेकर है, बल्कि कार्यक्रम में मौजूद अतिविशिष्ट अतिथि शिबू सोरेन के लिए प्रयोग किए गए 'विशेषण' को लेकर है.
झारखंड सरकार के विज्ञापन पर विवाद 'स्वीकार्य नहीं होगा'
दरअसल, शुक्रवार को झारखंड सरकार ने राज्य के नए प्रतीक चिन्ह का अनावरण किया. इस बाबत मोरहाबादी के आर्यभट्ट सभागार में आयोजित कार्यक्रम में अतिविशिष्ट अतिथियों में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष रविंद्र नाथ महतो के अलावा जेएमएम सुप्रीमो शिबू सोरेन को भी आमंत्रित किया गया. दरअसल, शिबू सोरेन के नाम के आगे 'राज्य निर्माता' शब्द का प्रयोग किया गया है. जिस पर विवाद शुरू हो गया है. प्रमुख विपक्षी दल बीजेपी ने इस बाबत आपत्ति जताई है. पार्टी का साफ तौर पर कहना है कि यह स्वीकार्य नहीं होगा.
बीजेपी नेता और गोड्डा सांसद निशिकांत दूबे ने लिया आड़े हाथबीजेपी नेता और गोड्डा संसदीय इलाके से एमपी गोड्डा निशिकांत दूबे ने कहा कि पूरी दुनिया जानती है कि झारखंड अलग राज्य के निर्माता पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे. उन्हीं के प्रयासों से सन 2000 में झारखंड राज्य का गठन हुआ. वैसे झारखंड में जेएमएम की सरकार है वह चाहे जिसे चाहे उसे राज्य निर्माता की संज्ञा दे सकती है. ईटीवी भारत से फोन पर बातचीत में उन्होंने कहा कि ऐसे राज्य का भगवान ही मालिक है.
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सीएम के विभाग ने जारी किया विज्ञापन, उस पर भी उठे सवाल
दरअसल, शुक्रवार को आयोजित प्रतीक चिन्ह अनावरण कार्यक्रम के लिए सूचना एवं जनसंपर्क विभाग की ओर से जारी किए गए विज्ञापन को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं. सरकार कथित रूप से जारी विज्ञापन में एक तरफ जहां प्रतीक चिन्ह में 'सफेद हाथी' का इस्तेमाल किया गया है. वहीं, दूसरी तरफ प्रतीक चिन्ह को परिभाषित करते हुए पलाश के फूल, हरे रंग, स्थानीय उत्सव और भारत के राज्य चिन्ह को भी परिभाषित किया गया है. सबसे बड़ी बात यह है कि उस कड़ी में काले रंग के हाथी की फोटो का उपयोग किया गया है. आधिकारिक सूत्रों की माने तो जब प्रतीक चिन्ह में सफेद हाथी स्पष्ट है ऐसे में दूसरे रंग के हाथी की फोटो लगाकर परिभाषित करना सही नहीं होगा.
पूर्ववर्ती सरकार की भी विज्ञापनों को लेकर हुई थी किरकिरी
बता दें कि सूचना एवं जनसंपर्क विभाग मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का पोर्टफोलियो है. पूर्ववर्ती सरकार में भी यह विभाग मुख्यमंत्री के अधीन ही था. पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास सरकार की ओर से भी जारी किए गए विज्ञापनों को लेकर सवाल खड़े हुए थे. हैरत की बात यह है की पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के कार्यकाल में रामचरितमानस की चौपाई रघुकुल रीत सदा चली आयी, प्राण जाए पर वचन न जाए, काफी चर्चा में रहा था. उसको लेकर तत्कालीन सरकार की काफी किरकिरी भी हुई थी.
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बता दें कि एकीकृत बिहार से झारखंड को 14 नवंबर, 2000 को अलग किया गया था. जब झारखंड अस्तित्व में आया तब केंद्र में बीजेपी की अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार थी. वहीं, झारखंड में बीजेपी के नेता बाबूलाल मरांडी पहले मुख्यमंत्री बने थे.