रांची: प्रदेश की विपक्षी पार्टी भाजपा ने लगभग 10 हजार लोगों की नौकरियों के अधर में लटकाने के मामले पर वर्तमान हेमंत सरकार को जिम्मेदार ठहराया है. भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने मंगलवार को भाजपा कार्यालय में प्रेस को संबोधित करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री ने पूर्व की भाजपा सरकार को निकम्मी बताया है. जबकि भाजपा का मानना है कि वर्तमान सरकार महा निकम्मी है.
उन्होंने कहा है कि सरकार ने उच्च न्यायालय में अपने पक्ष को सही तरीके से नहीं रखा. जबकि एक अधिकारी को बचाने की बात होती है, तो सुप्रीम कोर्ट में गैलेक्सी ऑफ लोअर उतार दिया जाता है. जिनकी 1 दिन की फी 5 लाख रुपये तक होती है लेकिन जब इस प्रदेश के आदिवासी मूलवासी युवाओं के हित की रक्षा करने की बात होती है. तो सरकार कोई कदम नहीं उठाती है. भाजपा सरकार ने 2016 में स्थानीय नीति को परिभाषित किया था, जिसे उच्च न्यायालय ने भी उचित ठहराया था. उसी आधार पर स्थानीय नियोजन नीति 2017 में बनी और इस नियोजन नीति के तहत हजारों लोगों की नियुक्ति 2017 से 2020 के कार्यकाल में हुआ.
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को पता था कि आंध्र प्रदेश के मामले के दूरगामी परिणाम झारखंड में भी हो सकते हैं. लेकिन फिर भी झारखंड सरकार ने इस मामले में हस्तक्षेप याचिका दाखिल नहीं किया. जिसका सर्वोच्च न्यायालय से आए फैसले का दूरगामी परिणाम हुआ और उसी को आधार मानकर नियोजन नीति पर रोक लगा दिया गया और विज्ञापन को रद्द कर दिया गया. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि राज्य सरकार बहुत दिनों से कहती आ रही थी कि पंचायत सचिव अभ्यर्थी के लंबित मामले में इसलिए नियुक्ति नहीं कर रही है. क्योंकि उच्च न्यायालय में रोक लागई है। लेकिन उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार के झूठ का पर्दाफाश किया है और जजमेंट में साफ लिखा है कि पंचायत सचिव भर्ती समेत दूसरे अन्य मामले में कोई रोक नहीं लगी है.
ये भी पढ़ें-हेमंत सरकार को नहीं है झारखंडी जनता की चिंता, महाधिवक्ता हाई कोर्ट में नहीं रख पाए अपना पक्ष: बाबूलाल मरांडी
उन्होंने कहा कि सरकार अगर इस मामले में उच्च न्यायालय में अपना पक्ष अच्छे तरीके से पेश नहीं कर पाई तो यह पूरी तरह से हर मुद्दे पर फ्लॉप सरकार है. सरकार को इसकी नैतिक जिम्मेवारी लेनी चाहिए. उन्होंने कहा कि 10 लोगों की नौकरियां अधर में लटकी हुई है, उनके हितों की रक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए. बता दें कि सोमवार को झारखंड हाई कोर्ट के द्वारा शिक्षक नियुक्ति को रद्द करने और फिर से उसके प्रक्रिया शुरू करने की बात कही गई है. कोर्ट ने कहा है कि सरकार की तरफ से नियोजन नीति को लेकर स्पष्ट बिंदु नहीं रखा गया है. जिस कारण यह फैसला लिया गया है.