रांची: ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियों के खिलाफ सबसे पहले आंदोलन का आगाज करने वाले आदिवासियों के सबसे बड़े हीरो भगवान बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि 9 जून को बड़े धूमधाम से पूरे राज्य में मनाया जाता है.
बिरसा मुंडा के संग्रहालय से स्पेशल रिपोर्ट जिस जेल में भगवान बिरसा ने अंतिम सांसे ली थी उस जेल को अब और भी विकसित किया जा रहा है. परिसर को बिरसा मुंडा संग्रहालय और पार्क के रूप में विकसित किया जा रहा है. वहीं जेल परिसर में ही झारखंड के तमाम उन शहीदों की आदमकद प्रतिमा स्थापित की जा रही है, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ते हुए अपनी शहादत दी थी.
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पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के पहल पर पिछले साल इस परिसर में झारखंड के तमाम शहीदों के शहादत स्थल की मिट्टी लाई गई थी. फिलहाल लॉकडाउन की वजह से पार्क का निर्माण कार्य रुका हुआ है. पहले इस जगह पर जो जेल था उसे रांची के खेलगांव इलाके में शिफ्ट कर दिया गया है.
भगवान बिरसा मुंडा की कहानी
आदिवासियों में सबसे बड़े लड़ाका और अपने समाज के नायक बिरसा मुंडा ने ब्रिटिश के खिलाफ 1895 में विद्रोह का बिगुल फूंका था. यह आंदोलन उन्होंने जंगल पर अधिकार के लिए छेड़ा था, इसके लिए उन्हें गिरफ्तार कर दो साल के लिए जेल में बंद कर दिया गया था.
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बिरसा मुंडा के हमलों से त्रस्त होकर ब्रिटिश सरकार ने उनकी गिरफ्तारी पर 500 रुपये का इनाम घोषित कर दिया था. जिसके बाद वर्ष 1900 में एक बार फिर बिरसा मुंडा को गिरफ्तार कर लिया गया और 9 जून, 1900 को संदेहास्पद परिस्थितियों में रांची के जेल में उनकी मृत्यु हो गयी. हलांकि उनकी मृत्यु के कारणों का अब तक खुलासा नहीं हो पाया है.