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होली में डाला रंग तो करनी पड़ेगी शादी, मना किया तो संपत्ति लड़की के नाम

होली रंगों का त्योहार है लेकिन झारखंड में रंग से होली खेलना महंगा पड़ सकता है. किसी कुंवारी लड़की को रंग लगाने पर आपको उससे शादी करनी पड़ सकती है और मना करने पर आपकी सारी संपत्ति उस लड़की के नाम की जा सकती है.

बाहा पर्व
होली में डाला रंग तो करनी पड़ेगी शादी

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Published : Mar 9, 2020, 3:12 PM IST

Updated : Mar 9, 2020, 4:59 PM IST

जमशेदपुरः झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के सुदूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्रों में होली की अनूठी परंपरा है. यहां के संथाल आदिवासी होली के दिन किसी को भी रंग-गुलाल नहीं लगाते. यदि किसी भी युवक ने किसी कुंवारी लड़की पर रंग डाला तो उसे भरी पंचायत में सात फेरे लेने पड़ते हैं. ऐसा नहीं करने पर समाज उसकी सारी संपत्ति लड़की के नाम करने की सजा सुना सकता है.

वीडियो में देखिए स्पेशल स्टोरी

यहां के संथाल आदिवासी होली को बाहा पर्व के रूप में मनाते हैं. बाहा का मतलब है फूलों का पर्व. इस दिन आदिवासी समुदाय के लोग तीर धनुष की पूजा करते हैं. ढोल-नगाड़ों की थाप पर जमकर थिरकते हैं और एक-दूसरे पर पानी डालते हैं. संथाल आदिवासियों में बाहा के दिन पानी डालने को लेकर भी नियम है. जिस रिश्ते में मजाक चलता है, पानी की होली उसी के साथ खेली जा सकती है. संथाल आदिवासियों की परंपरा के कारण युवक भूलकर भी रंग से होली नहीं खेलते. यदि कोई युवक किसी कुंवारी लड़की को रंग लगा देता है तो उसे उससे शादी करनी पड़ती है. दरअसल, संथाल आदिवासियों में पति-पत्नी और मजाक के रिश्तों के अलावा किसी और के साथ रंग खेलने की मंजूरी नहीं है. ऐसा करना परंपरा के खिलाफ माना जाता है. जाने-अनजाने लड़की पर रंग डालने को संथाल आदिवासी जबदस्ती उसकी मांग भरने के जैसा मानते हैं. इसके लिए समाज ने सजा तय कर रखी है.

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मांझी बाबा का फैसला

मांझी बाबा को पंचायत में सबसे बड़े ओहदे का दर्जा दिया जाता है. मांझी बाबा के निर्देश के अनुरूप गांव में पंचों की बैठक में लड़की से युवक के साथ शादी के लिए पूछा जाता है. अगर लड़की शादी के लिए हामी भर देती है, तो युवक के साथ शादी करा दी जाती है. अगर लड़की शादी के लिए इंकार करती है, तो युवक की संपत्ति लड़की के नाम कर दी जाती है.

क्या होता है बाहा पर्व

बाहा पर्व का अर्थ होता है फूलों का पर्व. इस दिन संथाल आदिवासी समाज की महिलाएं जाहेरायो को अर्पित करती है. वहीं पुरुष धोती कुर्ता और सिर पर मोर पंख या साल के पत्ते लगाकर देवताओं को प्रणाम करते हैं. पर्व के दिन संथाली समाज के लोग तीर धनुष की भी पूजा करते हैं. इसके बाद ढोल-नगाड़ों की थाप पर जमकर नाचते-गाते हैं. इस दौरान लोग एक दूसरे पर पानी डालकर अपनी खुशी का इजहार करते हैं.

आदिवासी प्रकृति प्रेमी होते हैं और उनके हर रीति-रिवाज प्रकृति से जुड़े हैं. बाहा पर्व को भी इसी से जोड़ कर देखा जाता है. प्रकृति की पूजा करने वाला आदिवासी समाज अपनी परंपरा और संस्कृति को बचाए रखने के लिए आज भी पानी से होली खेलता है.

Last Updated : Mar 9, 2020, 4:59 PM IST

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