झारखंड

jharkhand

ETV Bharat / city

कैसे दुश्मन हुए धराशायी, जानिए रिटायर्ड हवलदार सत्येंद्र सिंह की जुबानी कारगिल विजय की कहानी - opration kargil vijay

देशवासियों के लिए आज का दिन बेहद खास है. क्योंकि 1999 में कारगिल युद्ध हुआ था जो लगभग 60 दिनों तक चला और 26 जुलाई के दिन उसका अंत हुआ और इसमें भारत विजय हुआ. तब से लेकर आज तक इस दिन को हम कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाते हैं.

harendra singh told story of kargil vijay diwas
डिजाइन इमेज

By

Published : Jul 26, 2020, 8:07 AM IST

Updated : Jul 26, 2020, 9:11 AM IST

जमशेदपुर: 1999 में कारगिल युद्ध में भारत के शूरवीरों ने एक बार फिर दुश्मन को मात देकर तिरंगा लहराया था. उस युद्ध में शामिल जवान आज भी उन दिनों को याद कर गर्व के साथ कहते हैं कि सरकार आदेश दे तो हम बिना शर्त लद्धाख जाने को तैयार हैं.

कारगिल की कहानी बताते सत्येंद्र सिंह

दुश्मनों को धराशायी कर बढ़ाया देश का मान

1999 में भारत-पाकिस्तान की सीमा कारगिल में लगभग दो माह तक चले युद्ध के दौरान 26 जुलाई को देश के जवानों ने दुश्मनों को धराशायी कर देश का मान बढ़ाते हुए कारगिल की चोटी पर शान से तिरंगा लहराया था. इस दिन को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है. कारगिल युद्ध के 20 साल बाद भी मौके पर मौजूद जवान आज उस दिन को याद कर गर्व करते हैं. जमशेदपुर के रहने वाले सत्येंद्र सिंह कारगिल युद्ध के गवाह हैं. 1978 में 20 वर्ष की आयु में फौज में शामिल हुए सत्येंद्र सिंह अब रिटायर्ड हो चुके हैं. सिपाही से हवलदार बनने तक के सफर में वो सियाचिन में ऑपरेशन मेघदूत में शामिल रहे हैं. माइनस 50 डिग्री में ऑपरेशन मेघदूत में पताका लहराने के बाद सत्येंद्र सिंह 1999 में कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी सेना से लोहा लेकर कारगिल पर विजय तिरंगा लहराने के बाद 2002 में रिटायर्ड हो गए.

उस वक्त की तस्वीर दिखाते सत्येंद्र सिंह

ये भी पढ़ें-कारगिल विजय दिवस विशेष: गुमला के शहीद बिरसा उरांव की जिद ने जीती जंग

आधी रात को हुए थे कारगिल रवाना

सत्येंद्र अपने कमरे में पुराने फाइल में रखे दस्तावेज और कुछ तस्वीरों को देख कारगिल और सियाचिन की याद को ताजा करते हैं. कारगिल युद्ध का गवाह बने सत्येंद्र सिंह बताते हैं कि जोधपुर में 2 जून की शाम अचानक सैनिक सम्मेलन में बताया गया कि उन्हें 4 घंटे में मूव करना है. रात को जवानों की टीम जोधपुर से राजस्थान बॉर्डर पहुंची. जहां आराम कर फिर पंजाब बॉर्डर के लिए निकल पड़े और पंजाब बॉर्डर से कारगिल पहुंचे, जहां युद्ध चल रहा था. कारगिल की बर्फीली और पथरीली चोटी पर दुश्मन थे. नीचे भारतीय सेना थी. कुछ जवानों ने पैदल आर्म्स के साथ पहाड़ी पर चढ़ना शुरू किया. भारतीय सेना ने घेराबंदी कर दुश्मनों को मार गिराया और कारगिल की चोटी पर कब्जा कर 26 जुलाई के दिन तिरंगा फहराया. तब से लेकर आज तक कारगिल विजय दिवस मनाते आ रहे हैं.

सत्येंद्र सिंह की की तस्वीर

15 दिसंबर तक टिकी रही सेना

वो बताते हैं कि उन दिनों संचार के साधन सीमित थे. जो एक चुनौती थी, लेकिन हम भारतीय फौजियों ने हिम्मत नहीं हारी. इस दौरान लगभग 550 जवान शहीद हुए थे और 1 हजार जवान घायल हुए थे. जीत के बाद 15 दिसंबर तक हमारी पूरी टीम कारगिल पर टिकी रही, जिससे दुश्मन दोबारा कोशिश ना कर सके.

Last Updated : Jul 26, 2020, 9:11 AM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details