जमशेदपुरः प्रकृति की पूजा करने वाले आदिवासी समाज अपनी परंपरा और संस्कृति को बचाए रखने के लिए आज भी सजग हैं. होली से पूर्व संथाल समाज विशाल दिशोम बाहा पर्व मनाते हैं. जिसमे नायके यानी पंडित को हजारों की संख्या में समाज की महिलाएं अपने पारंपरिक परिधान में ढोल नगाड़ा की थाप पर झूमती हुई घर पहुंचाती हैं.
प्रकृति की पूजा करने वाला आदिवासी समाज और उनके मनाए जाने वाले हर पर्व और त्योहार की अपनी एक अलग पहचान है. जो प्रकृति से जुड़ी हुई है जिसे आज भी आदिवासी परंपरा के अनुसार मनाते आ रहे हैं. कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिला जमशेदपुर के करनडीह चौक पर जहां लगभग दस हजार की संख्या में समाज के लोगों ने विशाल दिशोम बाहा मनाया. संथाल समाज में होली से पहले प्रतिवर्ष भारी संख्या में लोग एक जगह उपस्थित होकर दिशोम बाहा मनाते हैं.
दरअसल, समाज का पंडित जिसे संथाल में नायके कहते हैं, वो जाहेर स्थान में अपनी देवी देवताओं की पूजा करने सुबह आते हैं. जिन्हें शाम के वक्त समाज के लोग सम्मान के साथ उनके घर पहुंचाते हैं. इस दौरान रास्ते में जगह-जगह महिलाएं नायके के पैर धोती हैं और नायके उन्हें आशीर्वाद देते हैं. हाथ में साल का पत्ता और पूजा सामग्री लेकर नायके चलते हैं. उनके साथ उनके शिष्य भी रहते हैं जो झूमते रहते हैं.
ऐसी मान्यता है कि पूजा के बाद घर पहुंचने तक शिष्यों में पूजा का असर रहता है. जिसके कारण वो आंख बंद कर झूमते हुए नायके के साथ चलते हैं. उनमें एक शिष्य टोकरी, एक हाथ में झाड़ू लिए नायके के आगे-आगे रास्ता साफ करते चलता है. इस दौरान नायके के आस पास सभी नंगे पांव रहते हैं. करनडीह जाहेर स्थान से नायके के पीछे हजारों की संख्या में आदिवासी महिलाएं ढोल, नगाड़ा और मांदर की थाप पर झूमती चलती हैं.