जमशेदपुर: टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन की वरिष्ठ प्रशिक्षक अस्मिता दोरजी एक नया रिकॉर्ड बनाने जा रही है. वे सप्लिमेंटरी ऑक्सीजन के बिना दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह करने का प्रयास करेंगी. अस्मिता दोरजी से पहले अब तक किसी भारतीय महिला को ऐसा करने में कामयाबी नहीं मिली है.अस्मिता दोरजी अपने इस अभियान के लिए 3 अप्रैल 2022 को नेपाल के लिए रवाना होंगी.
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क्या है पूरा कार्यक्रम:नेपाल पहुंचने के बाद अस्मिता 6 अप्रैल को एवरेस्ट बेस कैंप के लिए रवाना होंगी. इस यात्रा को पूरा करने में लगभग आठ दिन लगेंगे, जिसके बाद वह समायोजित करने के लिए 2-3 दिन बिताएंगी. इसके बाद वह लोबुचे ईस्ट पर चढ़ने का प्रयास करेंगी, जो उसी क्षेत्र में 6119 मीटर की ऊंचाई पर है. उसके बाद वह लगभग 1 महीने के लिए कैम्प 3 तक अनुकूलन रोटेशन के लिए बेस कैम्प में वापस आ जाएगी. फिर उन्हें अच्छे मौसम की प्रतीक्षा करनी होगी जो 15 से 25 मई तक आने की संभावना है. उसके बाद वह अपने अभियान के लिए चढ़ाई शुरू करेगी.
नए अभियान पर अस्मिता दोरजी बेहद मुश्किल है ये अभियान: बता दें कि 8000 मीटर से ऊपर हवा के अत्यधिक कम घनत्व और खतरनाक क्षेत्र, तेज हवाओं और अत्यधिक ठंड की स्थिति को देखते हुए यह प्रयास अनूठा होगा. दुनिया में बहुत कम लोग हैं जो बिना सप्लिमेंट्री ऑक्सीजन के माउंट एवरेस्ट पर चढ़ सकें हैं. बहुत कम ऑक्सीजन उपलब्ध होने के कारण पर्वतारोहियों को जीवित रहने और सुरक्षित लौटने के लिए कैंप -3 यानी 7100 मीटर से ऊपर सप्लिमेंटरी ऑक्सीजन लगाने की आवश्यकता होती है.
टाटा स्टील अभियान को करेगा प्रायोजित: टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन के चैयरमैन सह टाटा स्टील वाइस प्रेसिडेंट (कार्पोरेट सर्विसेज) चाणक्य चौधरी ने इस चुनौतीपूर्ण अभियान के लिए अस्मिता दोरजी को शुभकामनाएं दी है. उन्होंने कहा कि ये प्रयास मानवीय सहनशक्ति और उसके पास मौजूद अदम्य भावना के अंतिम प्रदर्शन का एक उदाहरण है. चाणक्य चौधरी ने कहा कि अस्मिता की सुरक्षा टीम के लिए पहली प्राथमिकता रहेगी. फाउंडेशन ने अपने अद्वितीय प्रस्ताव और निरंतर प्रयासों के माध्यम से देश में साहसिक खेलों को बढ़ावा देने के साथ ही आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करने का प्रयास जारी रखा है.
कौन हैं अस्मिता दोरजी: मूल रूप से एक शेरपा एवरेस्ट क्षेत्र के नामचे बाजार के ऊपर एक छोटे से गांव थेसू में पैदा हुई थीं. 1989 में अपनी मां के निधन के बाद भारत चली आयी थी. TSAF ने अस्मिता को 2001 में अपना मूल पर्वतारोहण पाठ्यक्रम और बाद में 2003 में उन्नत पर्वतारोहण पाठ्यक्रम पूरा करने के लिए समर्थन दिया. फिर उन्हें बाहरी नेतृत्व पाठ्यक्रम और अभियानों के संचालन के लिए TSAF में प्रशिक्षक के रूप में नियुक्त किया गया था. अस्मिता ने पर्वतारोहण के क्षेत्र में कई बेमिसाल उपलब्धियां हासिल करते हुए एक जांबाज पर्वतारोही के तौर पर अपनी अलग पहचान बनाई है.
अस्मिता दोरजी की उपलब्धियां:टाटा स्टील के सहयोग से बिना ऑक्सीजन के हिमालय की चढ़ाई का संकल्प लेने वाली अस्मिता दोरजी के नाम कई उपलब्धियां हैं. आइए जानते हैं उनके कुछ कारनामों के बारें में.
- अस्मिता दोरजी ने 6 हजार मीटर से अधिक ऊंची की 8 चोटियों पर फतह पाई है या चढ़ाई का प्रयास किया है. माउंट सतोपंथ (7075 मीटर), माउंट धर्मसुरा (6420 मीटर), माउंट गंगोत्री 1 (6120 मीटर), माउंट स्टोक कांगड़ी (6070 मीटर), कांग यात्से 2 (6270 मीटर), जो ज़ोंगो (6240 मीटर) पर अस्मिता दोरजी ने सफलता पूर्वक चढ़ाई की है.
- अस्मिता दोरजी ने सर्दियों के मौसम में माउंट यूटी कांगड़ी (6030 मीटर) पर चढ़ाई की है. इसके अलावे सर्दियों में ही माउंट स्टोक कांगड़ी पर क्लाइम्बिंग का प्रयास करते हुए 5700 मीटर तक पहुंचने में सफलता पाई.
3 साल से कर रही है तैयारी:इतनी उपलब्धियों के बावजूद अस्मिता दोरजी बिना ऑक्सीजन के पहाड़ों पर चढ़ाई के लिए तीन सालों से प्रशिक्षण ले रही हैं. जिसमें क्लाइम्बिंग के दौरान ऑक्सीजन की कमी को ध्यान में रखते हुए, उनके द्वारा अपनी ताकत, धीरज और सहनशक्ति को बेहतर बनाने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है. लंबी दूरी के लिए साइकिल चलाना और दौड़ना भी उनके प्रशिक्षण में शामिल है.