हजारीबाग:पीएम मोदी ने पांच साल पहले उज्जवला (Ujjwala scheme) की शुरुआत हुई थी. तब पीएम मोदी ने इस योजना को एक ऐसी योजना बताया था जिससे गरीब महिलाओं को लकड़ी-उपले के धुएं में खाना बनाने से आजादी मिलने वाली बताया था. लेकिन इसके पांच साल गुजर जाने के बाद ये योजना दम तोड़ रही है. बढ़ते एलपीजी के दाम ने महिलाओं को एक बार फिर से धुएं वाले चूल्हे पर खाना बनाने पर मजबूर कर दिया है.
नहीं मिली धुएं से आजादी
बढ़ती महंगाई ने उज्जवला योजना में पलीता लगा दिया है और पीएम मोदी का सपना धुएं में उड़ गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़े ही तामझाम से इस योजना की शुरुआत की थी. इसे महिलाओं को धुएं से आजादी की बात कही गई थी. मोदी सरकार इस योजना को आज भी अपनी बड़ी कामयाबी मे से एक मानती है. लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है. इस योजना के सिर्फ पांच सालों में ही दम तोड़ दिया है. गैस के बढ़ते दाम और घटती सब्सिडी ने लोगों को परेशान कर दिया है. ऐसे में जिन गरीब परिवारों को उज्जवला योजना का लाभ दिया गया था वे गैस सिलेंडर दोबारा नहीं भरवा पा रहे हैं. जिन लोगों ने बड़े ही खुशी के साथ उज्जवला योजना के तहत लाभ लिया था. अब गैस सिलेंडर उनके घर में शोभा की वस्तु बनकर रह गया है और महिलाएं फिर से लकड़ी, कोयला और उपला (गोइंठा) पर खाना बनाती दिख रहीं हैं.
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बढ़ती महंगाई ने बढ़ाई मुसीबत
बढ़ती महंगाई ने आर्थिक रूप से कमजोर गैस उपभोक्ताओं के लिए नई मुसीबत खड़ी कर दी है. उज्ज्वला योजना के अधिकांश उपभोक्ताओं ने सिलेंडर में गैस भरवाना बंद कर लकड़ी, गोंइठा या कोयला की ओर बढ़ चले हैं. स्थानीय लोगों के अनुसार एलपीजी की मूल्य वृद्धि से निम्न और मध्यम वर्ग की गृहस्थी बिगड़ रही है. हजारीबाग के सदर प्रखंड के गोदखर गांव कि महिलाओं का कहना है कि उन लोगों का परिवार 1500 रुपए में चलता है. ऐसे में सिर्फ गैस के लिए ही 1000 रुपए दें तो फिर उनका घर कैसे चलेगा. जहां एक तरफ खाद्य पदार्थों का कीमत बढ़ता जा रहा है, रोजगार की कमी है. तो दूसरी ओर सरकार गैस की कीमतों में बढ़ोतरी करती जा रही है. इसलीए उन्होंने गैस पर खाना बनाना बंद कर दिया.