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पेट की भूख ने कुदाल उठाने को किया मजबूर, कुशल श्रमिक काट रहे मिट्टी

कोरोना की मार से कोई नहीं बचा है. ऐसे में घर लौटे कुशल प्रवासी मजदूरों को उनके अनुसार काम नहीं मिल पा रहा है. हजारीबाग के मेरु पंचायत में अब ये कुशल मजदूर मिट्टी काटने और ढोने का काम कर रहे हैं. उनका कहना कि मनरेगा के तहत काम तो कर रहे पर पैसे उतने नहीं मिलते की घर का खर्चा चल सके.

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परेशान कुशल मजदूर

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Published : Jun 20, 2020, 7:59 PM IST

Updated : Jun 20, 2020, 8:43 PM IST

हजारीबाग: पेट की भूख ऐसी दर्द है जिसके चलते कोई भी व्यक्ति कुछ भी कर जाने को मजबूर हो जाता है. ऐसे में कई कुशल श्रमिक भी हैं, जो कुदाल उठाने को मजबूर हैं. ऐसे ही कुछ मजदूर हजारीबाग के मेरु पंचायत में काम कर रहे हैं. जब इनका बचाया हुआ पैसा खत्म हो गया तो इनके पास काम करना मजबूरी हो गई. काम नहीं मिला तो मुखिया ने मदद की और इन्हें मनरेगा से जोड़ दिया. ऐसे में अब ये कुदाल चलाकर 194 रुपए कमा रहे हैं. इनका कहना है कि नहीं से तो हां अच्छा होता है. घर बैठे हुए थे, पॉकेट में पैसा नहीं था. घर में अनाज की आवश्यकता है. ऐसे में हम लोगों ने कुदाल उठाया है और काम में लग गए हैं.

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केस-1
मोहम्मद अमीन मुंबई में काम किया करते थे. इनका वेतन भी अच्छा खासा था. वहां ये शॉपिंग एडवाइजर के पद पर काम कर रहे थे. जब समय मिलता तो खुद का टेलरिंग दुकान खोल रखा था. जहां यह कपड़े की सिलाई करते थे. ऐसे में जिंदगी भी काफी अच्छी चल रही थी. लेकिन संक्रमण ऐसा आया कि इनका सब कुछ खत्म हो गया और वापस हजारीबाग के मेरु अपने पैतृक गांव आना पड़ा. अब यहां पर यह नाला गहरीकरण का काम में लगे हैं. मनरेगा के तहत इन्हें काम दिया गया है. उनका कहना है कि इतने कम पैसे में कहां से गुजारा चलेगा, लेकिन जो है ठीक ही है.
कुशल मजदूर का दर्द

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केस-2
मोहम्मद जोहार मुंबई में बड़े व्यवसायी के घर में ड्राइवर का काम किया करते थे. जहां उन्हें 20 हजार रुपए वेतन मिला करता था. कोरोना का कहर ऐसा आया कि व्यवसायी घर में लॉक हो गए और इन्हें काम से बाहर कर दिया. आलम यह है कि अब यह हजारीबाग में मिट्टी खोदने का काम कर रहे हैं. इनका भी कहना है कि कोरोना ने बर्बाद कर दिया और अब मट्टी खोदने का काम कर रहे हैं. उनका यह भी कहना है कि कम से कम जीने के लिए सरकार ने मनरेगा के तहत काम तो दे दिया है, लेकिन इतने कम पैसे से न पेट की आग हमारी ठंडी होगी और न परिवारवालों की.

मनरेगा के तहत चल रहा काम
केस-3

विक्रम दिल्ली में प्लंबर का काम किया करते थे. कुशल श्रमिक होने के कारण दिल्ली में इन्हें अच्छा खासा पैसा भी मिला करता था. महानगर होने के कारण कमाने का विकल्प भी खुला हुआ था, लेकिन अब विक्रम दिल्ली में नहीं हजारीबाग के अपने गांव में हैं. उनका कहना है कि बड़ी मुश्किल से दिल्ली से हजारीबाग पहुंचे हैं. 2 महीना तक दिल्ली में लॉकडाउन था और वे अपने खोली में कैद थे. सरकार ने मदद किया और गांव पहुंचे हैं. लेकिन अब पैसा नहीं है. इसलिए अपने मुखिया के पास गए और मुखिया ने काम पर लगाया. आज मिट्टी काटने को विवश हैं, क्योंकि दूसरा विकल्प नहीं है.

नाला निर्णाण कार्य में लगे कुशल मजदूर

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'रोजगार देने का काम जरूर कर रहे हैं'
वहीं, मुखिया भी कहती हैं कि कई लोग रोजगार मांगने के लिए पहुंच रहे हैं. ऐसे में कुशल श्रमिक की संख्या भी अच्छी खासी है. लेकिन फिलहाल लोगों के पास दूसरा वैसा काम नहीं है कि उन्हें रोजगार दें. ऐसे में मनरेगा ही एकमात्र रोजगार देने का साधन है. मुखिया ने कहा कि सरकार ने जो व्यवस्था दिया है, उसके तहत उन्हें वे रोजगार देने का काम जरूर कर रहे हैं.

काम करते मजदूर
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समय के अनुसार खुद को ढालने की जरूरत
अब कुशल श्रमिक को कब उनके कुशलता के अनुसार काम मिलता है यह तो समय ही बताएगा. लेकिन यह बात जरूर है कि पेट की आग हर एक व्यक्ति को तोड़ देती है. ऐसे में जरूरत है कुशल श्रमिकों को दृढ़ता के साथ समय कर मुकाबला करने की और समय के अनुसार खुद को ढालने की.
Last Updated : Jun 20, 2020, 8:43 PM IST

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