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ब्रह्मडीहा कोल माइंस घोटाला: ग्राउंड जीरो पर ईटीवी भारत, सुनिए उत्पादन से लेकर विवाद तक की कहानी - ब्रह्मडीहा कोल माइंस गिरिडीह

गिरिडीह के ब्रह्मडीहा ओपेनकास्ट आवंटन मामले में पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री दिलीप रे समेत अन्य को कोर्ट ने दोषी करार दिया है. इस फैसले के बाद ईटीवी भारत ने माइंस जाकर वहां पर कार्यरत निजी सुरक्षा गार्ड और राष्ट्रीय कोलियरी मजदूर यूनियन के एरिया सचिव से पूरी जानकारी ली.

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Published : Oct 7, 2020, 9:16 AM IST

Updated : Oct 7, 2020, 12:07 PM IST

गिरिडीह: कोलगेट घोटाले में गिरिडीह के चुंजका स्थित माइंस (ब्रह्मडीहा ओपेनकास्ट) का आवंटन फंसने के बाद पूरे मामले की जांच सीबीआई ने की थी. अब इस मामले में पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री दिलीप रे समेत अन्य को कोर्ट ने दोषी करार दिया है. इस फैसले के बाद ईटीवी भारत ने माइंस जाकर वहां पर कार्यरत निजी सुरक्षा गार्ड और राष्ट्रीय कोलियरी मजदूर यूनियन के एरिया सचिव से पूरी जानकारी ली.

देखिए पूरी खबर

जिले के सदर प्रखंड के चुंजका में है बंगाल कोल. यहीं की कोलियरी की नीलामी वर्ष 1999 में हुई थी. नीलामी के बाद इस कोलियरी से कोयला निकालने का ठेका ब्रह्मडीहा ओपेनकास्ट माइंस (केस्ट्रोन माइनिंग/ केस्ट्रोन टेक्नोलॉजी) को मिला था. वर्ष 2004 से यहां खनन का काम शुरू हुआ, जो लगभग 2007/08 तक चला. इस दौरान 18 हजार टन कोयला का उत्पादन किया गया. बाद में आपसी विवाद हुआ और उत्पादन ठप्प हो गया.

यहां के बाद कोल ब्लॉक आवंटन में अनियमितता का मामला भी सामने आया. इसी बीच 2014 में कंपनी के पदाधिकारी यहां से चले गए तब से इस कोलियरी का देखभाल स्थानीय युवक करते रहे हैं. अब जब मंगलवार को इस घोटाला के मामले में दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने पूर्व के अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के कोयला राज्यमंत्री दिलीप रे के अलावा प्रदीप कुमार बनर्जी, नित्यानंद गौतम, केस्ट्रोन टेक्नोलॉजी, कंपनी के डायरेक्टर महेंद्र कुमार अग्रवाल और केस्ट्रोन माइनिंग लिमिटेड को दोषी करार दिया है तो ईटीवी भारत की टीम उक्त माइंस में पहुंची और यहां पर उत्पादित कोयला की रखवाली कर रहे निजी गार्डों से बात की.

माइंस पर मालिकाना हक को लेकर फायरिंग

इस दौरान यहां पर गार्ड रहे मो. सादाब उर्फ छोटू मास्टर के साथ-साथ गार्ड मो. बसीर से बात की. बताया कि 2004 से लगभग 2008 तक यहां पर कोयला का उत्पादन हुआ था. इसी दौरान माइंस पर मालिकाना हक को लेकर कंपनी के दो भाइयों के बीच झड़प होती रही. एक बार तो सौ-डेढ़ सौ लोग हरवे हथियार के साथ आये थे और फायरिंग भी हुई थी, जो गार्ड यहां पर कार्यरत थे उनपर भी गोली चलायी गयी थी. इसके बाद से उत्पादन बंद हो गया. कुछ वर्षों के बाद यह बात सामने आयी की इस कोल ब्लॉक के आवंटन में अनियमितता हुई थी. घोटाले की बात सामने आने के बाद तीन बार सीबीआई की टीम तो एक बार ईडी की टीम भी जांच करने पहुंची.

बगैर मानदेय करते हैं रखवाली

माइंस बंद होने और सीबीआई की जांच के बाद यहां पर जब्त किए गए कोयला की रखवाली यहीं के युवकों ने शुरू की. इस दौरान कंपनी के द्वारा यह कहा जाता रहा कि गार्डों को मानदेय मिलेगा, लेकिन आज तक मानदेय नहीं मिला है. उल्टा साजिश रचकर गार्डों को फंसाने का काम किया जाता है.

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धोखा में रखकर लिया गया था ब्लॉक: बुल्लू

इस मामले पर राष्ट्रीय कोलियरी मजदूर यूनियन के एरिया सचिव एनपी सिंह बुल्लू ने बताया कि वाजपेयी सरकार में ब्रह्मडीहा कॉल ब्लॉक का आवंटन हुआ था. शर्त थी की पावर प्लांट खोलने पर ही आवंटन मिलेगा. माइंस लेने वाली कंपनी ने यह बात कही भी थी कि वे पवार प्लांट खोलेंगे और जबतक प्लांट नहीं खुलेगा तब तक कोयला को पतरातू थर्मल पावर को दिया जाएगा, लेकिन यह भी नहीं हुआ. ऐसे में शिकायत हुई तो केंद्र की टीम भी पहुंची और जांच कर कहा गया कि यह कंपनी उत्पादन नहीं कर सकती. इसके बाद सीबीआई ने जांच शुरू की. कहा कि भाजपा के शासनकाल में इस तरह का घोटाला होता रहता है. बुल्लू ने आरोप लगाया कि अभी भी कई घोटाला हो रहा है.

Last Updated : Oct 7, 2020, 12:07 PM IST

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