दुमकाः केंद्र या राज्य सरकार भले ही विकास कार्य तेजी से धरातल पर उतारने का दावा करती हो पर आज भी लोगों को पेयजल, सड़क जैसी बुनियादी सुविधाएं मयस्सर नहीं है. हम बात कर रहे हैं झारखंड-पश्चिम बंगाल की सीमा (Jharkhand-West Bengal Border) पर स्थित दुमका जिला के रानीश्वर प्रखंड के रेशमा गांव (Reshma Village) की. आदिवासी बहुल इस गांव में आबादी लगभग 700 है. ये सभी लोग तीन अलग-अलग टोलों में रहते हैं.
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दुमका जिला का रानीश्वर प्रखंड का आदिवासी बहुल रेशमा गांव तीन टोलें हैं जो लगभग दो किलोमीटर एरिया में फैला हुआ है. इस गांव में ना तो पीने का साफ पानी का स्त्रोत लोगों के पास है और ना ही आवागमन के लिए अच्छी सड़कें हैं. गांव में तीन टोलें हैं, बुचह टोला, यहां करीब 35 घर है, इस टोला में कोई भी चापाकल नहीं है. यहां ग्रामीण गांव के बाहर आधा किलोमीटर दूर स्थित डोभा से पानी भरकर लाते हैं.
इस टोला के ग्रामीणों का कहना है कि पीने के पानी की बहुत समस्या (Drinking Water Problem) है. खासकर शादी-ब्याह और मेहमानों के घर आने पर पानी की बहुत दिक्कत हो जाती है. बहुत मुश्किल से जिन्दगी गुजर रही है, इस टोला में सड़क तो है ही नहीं. जिससे लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
रेशमा गांव में मांझी टोला है, यहां लगभग 40 घर है. इस टोला में दो चापाकल है, जिसमें एक ही से थोड़ा-बहुत पानी निकलता है. यहां छह सात महीने पहले सोलर पानी टंकी लगाया गया, पर एक बार भी सोलर टंकी से पानी नही निकला. ग्रामीणों का कहना है कि ठेकेदार और विभाग सिर्फ खानापूर्ति करके चले गए हैं. इस टोला की सड़कें भी बदहाल (Roads in Bad Shape) हैं.
रेशमा गांव के स्कूल टोला में करीब 40 घर हैं. यहां के तीन चापाकल से ठीकठाक पानी तो निकल जाता है पर यहां की सड़क की हालत काफी दयनीय है. पुरानी जमाने की सड़कें हैं, जहां पर बड़े-बड़े पत्थर निकले हुए हैं, जिस पर लोगों का पैदल चलना दूभर है.