देवघरः माहवारी से महिलाओं और लड़कियों को गुजरना होता है. हालांकि देश के ग्रामीण इलाकों में इसे लेकर अब भी तमाम तरह की भ्रांतियां या यूं कहें कि एक अंधविश्वास है. जिसे लेकर महिलाएं माहवारी के दौरान खुद को असहज महसूस करती हैं. मसलन, पीरियड्स के दौरान लड़कियों और महिलाओं को कुछ सामानों को छूने से लेकर पूजा-पाठ तक पर बंदिश का दंश झेलना पड़ता है, लेकिन देवघर जिले में एक ऐसा गांव है, जहां किशोरियों ने इस कुप्रथा को जड़ से उखाड़ फेंकने का बीड़ा उठाया है. लड़कियों के इस काम में सहयोग एक एनजीओ कर रही है.
देवघरः अभिशाप नहीं है 'महिलाओं की माहवारी', ग्रामीण बच्चियों ने छेड़ा जागरूकता अभियान
देवघर में स्थानीय लड़कियों ने एक एनजीओ के सहयोग से महिलाओं को माहवारी के दौरान चली आ रही दकियानूसी प्रथाओं को लेकर जागरुक करने का बीड़ा उठाया है. शिक्षा के लिहाज से बेहद पिछड़े ग्रामीण इलाकों में किशोरियां सड़क किनारे बनी दीवारों पर पेंटिग्स के जरिए महिलाओं को जागरुक कर रही है.
स्थानीय लड़कियां गांव-गांव और घर-घर जाकर किशोरियों और महिलाओं को माहवारी को लेकर जागरूक कर रही हैं. इस काम के लिए एनजीओ की तरफ तमाम तरह की सुविधाएं भी मुहैया करा रही है. शिक्षा के लिहाज से बेहद पिछड़े ग्रामीण इलाकों में किशोरियां सड़क किनारे बनी दीवारों पर पेंटिग्स के जरिए महिलाओं को जागरुक कर रही है. दरअसल, लड़कियों की कोशिश है कि माहवारी के चक्र के अलावा तमाम दकियानूसी परंपराओं से मुक्ति मिले, जो 21वीं सदी में भी ग्रामीण महिलाओं के विकास में बाधक बनी हुई हैं.
लड़कियों के मुताबिक, शुरुआती दौर में इन्हें घर और गांव में विरोध का सामना करना पड़ा. हालांकि इन बच्चियों का आत्मविश्वास नहीं डगमगाया और नतीजा आज सबके सामने है. आलम यह है कि, जिन लोगों ने पहले विरोध जताया, वही लोग आज इनके जज्बे को सलाम कर रहे हैं.