चाईबासा: झारखंड के नक्सल प्रभावित जिलों में संविदा पर बहाल 2,500 सहायक पुलिसककर्मी अपनी मांगों को लेकर पिछले 1 महीने से आंदोलन कर रहे हैं. वहीं दूसरी ओर सहायक पुलिसकर्मियों के परिजन भी अब सड़क पर उतर गए हैं. सहायक पुलिसकर्मियों के परिजनों ने चाईबासा स्थित तांबो चौक पर धरना प्रदर्शन किया. जुलूस निकाल कर सभी समाहरणालय पहुंचे और उपायुक्त के साथ-साथ पुलिस अधीक्षक को ज्ञापन सौंपा.
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सहायक पुलिसकर्मियों के परिजनों का कहना है कि जिस मकसद से हेमंत सोरेन सरकार का गठन किया था, आज वह पूरा होते नहीं दिख रहा है. सहायक पुलिसकर्मी अपने भाई-बहन नक्सली के खिलाफ ऑपेरशन में शामिल होते हैं. उन्हें बंधुआ मजदूर की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है. उनकी जो मांग है वो जायज है. एक सहायक पुलिसकर्मी की एक मां ने कहा कि क्या इस दिन के लिए हमलोगों ने अपने बच्चों को पढ़ाया था कि अपने बच्चों को हम सड़क पर छोड़ दें, हम बिल्कुल ऐसी सरकार नहीं चाहते. अगर झारखंड सरकार की पुलिस को सड़क पर भीख मांगना था तो जन्म के बाद से ही भीख मंगवाते, पुलिस की नौकरी के लिए कभी नहीं भेजते.
10 हजार में कैसे चलेगा परिवार
वहीं लोहरदगा में भी सहायक पुलिसकर्मियों के परिजन अब आंदोलन के लिए मैदान में उतर गए हैं. लोहरदगा समाहरणालय के पास परिजनों ने धरना प्रदर्शन किया. इस दौरान कोई अपने बच्चों के साथ पहुंचे, तो किसी की लाचार और बेबस बूढ़ी मां प्रदर्शन में शामिल थीं. इस दौरान सहायक पुलिसकर्मियों के परिजनों ने कहा कि अगर सरकार उनकी नहीं सुनेगी तो अंत में उन्हें भी धरना प्रदर्शन करना पड़ेगा. आखिर उम्र गुजरने के बाद वो कहां जाएंगे. उन्होंने कहा कि सरकार सिर्फ आश्वासन दे रही है. आखिर दस हजार रुपये में परिवार कैसे चलेगा.
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सरकार के मंत्री ने दिया था नियमितीकरण का भरोसा
नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विधि व्यवस्था और पुलिस बल की कमी को दूर करने के लिए रघुवर दास सरकार ने सहायक पुलिस की नियुक्ति की थी. यह नियुक्ति अनुबंध के आधार पर की गई थी. रघुवर सरकार ने पुलिसकर्मियों के अनुबंध का विस्तार भी किया. समय गुजरने के साथ जब इन पुलिसकर्मियों के नियमितीकरण को लेकर कोई पहल नहीं हुई तो वो आंदोलन पर उतर गए. एक साल पहले झारखंड सरकार के मंत्री ने भरोसा दिया था कि जल्द ही सहायक पुलिसकर्मियों को स्थाई किया जाएगा. लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ.