चाईबासा: खनिज संपदाओं से परिपूर्ण चाईबासा रेलखंड से रेलवे को करोड़ों रुपए का राजस्व प्राप्त होता है. 2015 में इस स्टेशन को आदर्श रेलवे स्टेशन का दर्जा भी मिल चुका है, लेकिन स्टेशन पर सुविधा के नाम पर कुछ नहीं है. आदर्श रेलवे स्टेशन का दर्जा मिलने के लगभग 4 साल बाद भी रेलवे स्टेशन पर व्यवस्था कम और अव्यवस्था अधिक दिखती है.
चाईबासा रेलवे स्टेशन को आदर्श का नाम तो जरूर मिल गया है पर रेलवे स्टेशन पर आदर्श रेलवे स्टेशन के मापदंडों के अनुसार कोई भी सुविधा उपलब्ध नहीं है. साथ ही रेलवे यात्रियों को मूल सुविधा भी मुहैया करवाने में विफल साबित हो रही है. जून 2015 को चाईबासा रेलवे स्टेशन को आदर्श रेलवे स्टेशन का दर्जा देकर चक्रधरपुर रेल मंडल प्रबंधक राजेंद्र प्रसाद द्वारा शिलान्यास किया गया था. उसके बाद से चाईबासा रेलवे स्टेशन को आदर्श रेलवे स्टेशन बनाने की दिशा में रेल मंडल ने अब तक कोई पहल नहीं की है. चाईबासा रेलवे स्टेशन आदर्श रेलवे स्टेशन शिलान्यास होने के 4 वर्ष बाद भी जस की तस स्थिति है.
चाईबासा रेलवे स्टेशन से खनिज संपदा की ढुलाई करने वाले रेलगाड़ियों को छोड़कर यात्री ट्रेनों की बात करें तो स्टेशन पर रोजाना तीन पैसेंजर और तीन एक्सप्रेस सवारी गाड़ियों का आना-जाना और ठहराव होता है. जिसमें से लगभग हजारों यात्री प्रतिदिन यात्रा करते हैं. स्टेशन से रेलवे को हर महीने लगभग 7 लाख की आमदनी होती है. इसके बावजूद भी सुविधाएं स्टेशन पर नदारद है. स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर 2 और 3 पर न तो यात्रियों के लिए शौचालय की व्यवस्था है और न ही बैठने की उचित व्यवस्था. प्लेटफॉर्म में कुछ स्थानों पर पंखे तो लगाए गए हैं, लेकिन इस भीषण गर्मी में वह यात्रियों को ठंडक पहुंचाने में भी नाकाफी है. प्लेटफॉर्म में लगाए गए कई पंखे खराब पड़े हुए हैं. स्टेशन पर यात्रियों के बैठने की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है. ऐसे में ट्रेन के समय स्टेशन पर यात्रियों को प्लेटफॉर्म में लगे पेड़ों के नीचे बैठना परता है.
खाने-पीने का नहीं है एक भी स्टॉल
चाईबासा रेलवे स्टेशन पर यात्रियों के खाने-पीने के लिए कोई स्टॉल की कोई व्यवस्था नहीं है. यात्रियों को खाने-पीने की चीजों के लिए स्टेशन के बाहर लगी दुकानों का सहारा लेना पड़ता है. रेल सूत्रों की माने तो स्टेशन पर लगने वाले स्टॉल का रेल मंडल से टेंडर प्रक्रिया की जाती है, लेकिन इस स्टेशन से दिन भर में मात्र 5-6 ट्रेनें ही गुजरती है. जिस कारण यात्रियों की संख्या कम होती है और स्टॉल के लिए टेंडर डालने वाले व्यापारियों का काफी घाटा होता है.