सोलन:यह बात सभी जानते है कि सरदार पटेल को भारतीय रियासतों को एक देश में मिलाने का श्रेय जाता है. पहाड़ी रियासतों के साथ भी सरदार पटेल का गहरा नाता रहा है. 75 साल पहले जिस समय हिमाचल के गठन हो रहा था तब हिमालयन हिल स्टेट सब रीजनल काउंसिल हिमालय प्रान्त नाम रखना चाहती थी, लेकिन सरदार पटेल ने हिमाचल प्रदेश नाम का ही अनुमोदन किया और इस प्रकार सोलन सम्मेलन में हिमाचल प्रदेश का जन्म हुआ.
28 जनवरी 1948 को 28 राजाओं ने सत्ता को छोड़ा:हिमाचल प्रदेश आज विश्व स्तर पर ख्याति पा रहा है. कई सरकारों का दौर हिमाचल प्रदेश में लोगों ने देखा है और कई मुख्यमंत्री हिमाचल प्रदेश में सत्ता संभाल चुके हैं.आज जो हिमाचल अपनी संस्कृति सभ्यता को लेकर लगातार आगे बढ़ रहा ,उसका नाम हिमाचल कैसे पड़ा यह बहुत कम लोगों को पता है.राज्य बनने से पहले हिमाचल में छोटी-छोटी रियासतें थी, जिनके राजाओं ने अपना शासनकाल हिमाचल प्रदेश को बनाने के लिए एक साथ छोड़ा था.28 जनवरी 1948 का वह दिन जब एक साथ हिमाचल प्रदेश के 28 रियासत के राजाओं ने अपनी सत्ता को छोड़ा था. हिमाचल प्रदेश को एक राज्य बनाने के लिए प्रस्ताव पारित किया था, लेकिन हिमाचल का नाम कहां रखा गया यह बहुत कम लोगों को पता है.
आज दरबारी हॉल में चल रहा पीडब्ल्यूडी कार्यालय दरबारी हॉल में राजा लोगों की बातों को सुनते थे:हिमाचल प्रदेश के सोलन शहर के चौक बाजार में बघाट रियासत के राजा दुर्गा सिंह का दरबारी हॉल हुआ करता था. जहां राजा लोगों की बातों को सुना करते थे और दरबार सजा करता था, लेकिन आज इस हॉल में पीडब्ल्यूडी कार्यालय चल रहा है, हॉल की दुर्दशा इतनी है कि लोहे के पिल्लरों के सहारे हॉल टिका हुआ है, लेकिन आज भी यह हॉल हिमाचल प्रदेश के नामकरण की कहानी को बयां करता है.
पहले मुख्यमंत्री डॉ. यशवंत सिंह परमार बैठक में हुए थे शामिल:बघाट रियासत के 77वें शासक राजा दुर्गा सिंह की अध्यक्षता में इसी दरबारी हॉल में 28 रियासत के राजाओं के साथ बैठक हुई, जिसमें प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री डॉ. यशवंत सिंह परमार भी विशेष रूप से उपस्थित थे, 28 रियासत के राजाओं ने एक साथ सत्ता छोड़ने का निर्णय लिया और हिमाचल प्रदेश को बनाने के लिए नाम पारित किया ,लेकिन उस समय मुख्यमंत्री डॉक्टर परमार चाहते थे कि हिमाचल प्रदेश में उत्तराखंड का जौनसार बावर क्षेत्र सम्मिलित हो और इसका नाम हिमालयन एस्टेट रखा जाए, लेकिन राजाओं ने डॉ. परमार की बातों का खंडन किया और हिमाचल का नाम रखते हुए इसका एक प्रस्ताव पारित कर दिया. तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल को वह प्रस्ताव भेजा गया, जिसके बाद हिमाचल प्रदेश के नाम पर मुहर लगी.
दरबारी हॉल में उस समय की कुर्सियां मौजूद दरबारी हॉल में उस समय की तीन कुर्सियां मौजूद:आज यही हिमाचल प्रदेश अनेकों विकास की गाथा गा रहा है, लेकिन विडंबना इस बात की है कि जहां पर उस हिमाचल प्रदेश का नामकरण हुआ जो आज विश्व स्तर पर अपनी एक अलग छाप छोड़ रहा है. उस भवन की तरफ कोई भी ध्यान नहीं दिया जा रहा .दरबारी हॉल में उस समय की तीन कुर्सियां आज भी मौजूद है जो बैठक के दौरान हुआ करती थी,लेकिन कुर्सियों की हालत यह है कि किसी में लकड़ी की फट्टियां लगाई गई है तो किसी में रस्सी लगाकर उसका इस्तेमाल किया जा रहा है.
म्यूजियम बनाया जाना चाहिए:साहित्यकारों का कहना है कि सरकार इस भवन का रखरखाव कर इसे एक म्यूजियम के तौर पर इस्तेमाल करें, क्योंकि यह भवन धरोहर है. जहां पर हिमाचल का नामकरण हुआ. साहित्यकार मदन हिमाचली का कहना है कि वे डॉक्टर यशवंत सिंह परमार से लेकर आज तक के सभी मुख्यमंत्रियों का कार्यकाल देख चुके हैं. कई बार इस भवन को म्यूजियम बनाने की बात वे मुख्यमंत्री के सामने करते रहे हैं, लेकिन आज तक कोई भी कार्रवाई सरकारों की तरफ से नहीं की गई. उनका कहना है कि जो हिमाचल आज लगातार उन्नति के पथ पर आगे बढ़ रहा है, उस हिमाचल के नामकरण की कहानी को बयां कर रहे भवन को एक अलग पहचान मिले इसके लिए सरकार को कार्य करना चाहिए.
दरबारी हाल की उस दौरान की तस्वीर धरोहर जर्जर हालत में:बता दें कि 28 जनवरी 1950 को सोलन शहर के चौक बाजार में स्थित इसी दरबारी हॉल में 28 राजाओं ने अपनी सत्ता को छोड़ा था लेकिन आज यही धरोहर जर्जर हालत में है,लोहे के पिलर के सहारे यह भवन टिका हुआ है.ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत का हिस्सा रहे हिमाचल प्रदेश को 26 जनवरी 1950 को हिमाचल को पार्ट सी स्टेट का दर्जा मिला इसके बाद 1 नवंबर 1956 को हिमाचल को केंद्र शासित राज्य बनाया गया और फिर एक लंबे इंतजार के बाद 25 जनवरी 1971 के दिन हिमाचल को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया,तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बर्फ के फाहों के बीच शिमला के रिज मैदान में जनसभा से 18वें राज्य के तौर पर हिमाचल प्रदेश की घोषणा की थी.
सरकार के कदम पर नजर:बहरहाल बात इतनी सी है कि हिमाचल जो आज लगातार उन्नति के पथ पर देश- विदेशों में अपना नाम ऊंचा कर रहा है. उसके नामकरण की कहानी को बयां करते इस भवन को एक अलग पहचान मिले. लोग उस इतिहास को जाने इसको लेकर सरकार को कार्य करना होगा. सरकार आने वाले समय में इन धरोहरों को संजोए रखने और बचाने के लिए क्या कदम उठाती है यह देखने लायक होगा.
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