शिमला: एक राज्य के तौर पर हिमाचल 50 बरस का होने वाला है. पहाड़ों पर बसा छोटा सा राज्य हिमाचल कई पैमानों पर आज देश के बड़े-बड़े राज्यों को भी चुनौती दे रहा है. उत्तर-पश्चिमी भारत का एक छोटा सा राज्य हिमाचल, जिसे देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है.
इतिहास के पन्नों को पलटा जाए, तो 19वीं शताब्दी में राजा रणजीत सिंह ने इस क्षेत्र के अनेक हिस्सों पर राज किया. जब अंग्रेज यहां आए, तो उन्होंने गोरखा लोगों को पराजित करके कुछ राजाओं की रियासतों को अपने साम्राज्य में मिला लिया था.
प्रदेश के अधिकतर क्षेत्रों की खूबसूरती ने अंग्रेजों को अपनी ओर आकर्षित किया. यहां कि जलवायु को देखते हुए पहाड़ों की रानी शिमला को अंग्रेजों ने अपनी ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया. फिर आजादी के बाद हिमाचल की राजनीति और भूगोल में कई परिवर्तन हुए. जनवरी 1948 को सोलन में शिमला हिल्स स्टेट्स यूनियन का सम्मेलन हुआ. हिमाचल प्रदेश के निर्माण की घोषणा इसी सम्मेलन में ही की गई.
इस सम्मेलन में यशवंत सिंह परमार ने इस बात पर जोर दिया कि हिमाचल प्रदेश का निर्माण और विकास तभी संभव है, जब हिमाचल को अलग राज्य का दर्जा मिलेगा. इसे सजाने, संवारने और आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी प्रदेश की जनता के हाथ होगी. शायद यही वो नीव थी, जिसपर आगे चलकर हिमाचल की बुनियाद खड़ी होनी थी.
15 अप्रैल 1948 को हिमाचल प्रदेश पहली बार केंद्र शासित प्रदेश के रूप में अस्तित्व में आया. अप्रैल 1948 में इस क्षेत्र की 27,018 वर्ग कि.मी. में फैली लगभग 30 रियासतों को मिलाकर इस राज्य को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया. उस समय हिमाचल प्रदेश में चार जिला महासू, सिरमौर, चंबा, मंडी शामिल किए गए थे. उस समय प्रदेश का कुल क्षेत्रफल 27018 वर्ग किलोमीटर और जनसंख्या लगभग 9 लाख 35 हजार के करीब थी. 1948 में ही सोलन की नालागढ़ रियासत को हिमाचल में शामिल किया गया था.