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ओले के 'गोलों' का नहीं होगा कोई असर, सेब को बचाएगी एंटी हेल नेट

ओलावृष्टि के कहर से बचने हिमाचल में अब काफी संख्या में बागवान एंटी हेल नेट का इस्तेमाल करने लगे हैं. बड़े बागवानों के साथ-साथ मध्यम वर्गीय बागवानों ने भी सेब के बागीचों में एंटी हेल नेट लगाए हुए हैं.

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Published : Jun 24, 2020, 3:45 PM IST

शिमला: हिमाचल की आर्थिकी में सेब का बहुत बड़ा योगदान है. प्रदेश में हर साल करीब 4500 करोड़ रुपये का सेब का व्यापार होता है. प्रदेश की आर्थिकी की रीढ़ की हड्डी माने जाने वाले सेब पर इस साल ओलावृष्टि कहर बन कर टूट रही है. इस आसमानी आफत से बचने के लिए हिमाचल के सेब उत्पादकों ने अपने बगीचों में एंटी हेलनेट लगाए हैं.

ओलावृष्टि से निपटने के लिए सेब बागवानों के पास एंटी हेल नेट के अलावा कोई दूसरा विकल्प मौजूद नहीं है. इन दिनों सेब के पौधे हेलनेट से छावनी में तब्दील होते नजर आ रहे हैं. बागवानी विभाग के निदेशक मदन मोहन शर्मा का कहना है कि बागवानों की सुविधा का ख्याल रखते हुए प्रदेश सरकार ने हेल नेट का परमानेंट स्ट्रक्चर मुहैया करवाया है. जिससे बागवानों को बार-बार मशक्कत ना करनी पड़े.

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विषम भौगोलिक संरचना के चलते सभी बागवानों के लिए एंटी हेल नेट को लगाना आसान नहीं है. सरकार एंटी हेल नेट लगाने के लिए बागवानों को 85 फीसदी तक की सब्सिडी दे रही है, लेकिन यह अनुदान बागवानों को नेट लगाने के बाद मिलता है, जिसके चलते हेल नेट की खरीद के लिए लाखों रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं.

ओलावृष्टि से अपनी फसल को बचाने के लिए बागवानों में एंटी हेल नेट की भारी डिमांड देखने को मिल रही है. ओलावृष्टि से ऊपरी शिमला के क्षेत्रों में 70 फीसदी पैदावार ओलावृष्टि की जद में है. रोहड़ू और टिक्कर क्षेत्र में करीब 18 हजार हेक्टेयर जमीन पर सेब की पैदावार की जा रही है. जिनमें से करीब 200 हेक्टेयर बगीचों पर ही एंटीहेल नेट लग पाए हैं.

हिमाचल में बीते तीन महीनों से बारिश के साथ-साथ कई जगह भारी ओलावृष्टि भी हुई है. जिससे सेब को भी नुकसान हुआ है. अब काफी संख्या में बागवान एंटी हेल नेट का इस्तेमाल करने लगे हैं. बड़े बागवानों के साथ-साथ मध्यम वर्गीय बागवानों ने भी सेब के बागीचों में एंटी हेल नेट लगाए हुए हैं. वहीं, सरकार हेल स्टोन की मार से बागवानों और किसानों की फसलों को बचाने के लिए एंटी हेल नेट मुहैया करवाने में अपनी पूरी कोशिश कर रही है.

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