किन्नौर: आज सड़कों के बिना जीवन की कल्पना करना भी बेईमानी है. इन्हीं सड़कों से ही आर्थिक और सामाजिक जीवन का विकास संभव है. अंग्रेजों ने भारत में अपना अधिपत्य स्थापित करने के बाद व्यापार को बढ़ाने के लिए तेजी से सड़कें बनाने शुरू की. इन्हीं में से एक थी इंडो तिब्बत सड़क मार्ग. इसकी डीपीआर 1850 में तत्कालीन भारतीय वायसरॉय लॉर्ड डलहौजी ने तैयार की थी. उस समय ये विश्व की सबसे ऊंची सड़क थी. आज इसे एनएच 5 के नाम से जाना जाता है. हिंदुस्तान तिब्बत सड़क मार्ग का निर्माण कालका से शुरू हुआ था. इसका सबसे ऊंचा हिस्सा किन्नौर में बना था.
लेखक टाशी नेगी कहते हैं कि हिंदुस्तान तिब्बत रोड जिसे आज हम राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 5 के नाम से जानते हैं. ब्रिटिश भारत के समय में बनी इस सड़क का इतिहास बहुत रोचक है. 1848 ई. में लॉर्ड डलहौजी ब्रिटिश भारत के गवर्नर जनरल बनकर आए थे. इनके कार्यकाल 1856 ई. तक रहा था. इनके कार्यकाल में ही जून 1850 ई. में नेशनल हाईवे नंबर 5 हिंदुस्तान तिब्बत रोड को बनाए जाने की कवायद शुरू हुई थी. इस काम का जिम्मा डलहौजी ने कमांडर इन चार्ल नेफियर को सौंपा था. चार्ल नेफियर ने आगे इस काम को अपने सचिव कैनेडी को सौंपा. इसलिए इस सड़क को कैनेडी के नाम से भी जाना जाता है.
इस सड़क को बनाते समय कई रोचक घटना घटी. इसमे एक है संजौली टनल. इसे बनाने में 18 हजार मजदूर लगे थे. मिस्टर ब्रिक्स के नेतृत्व में टनल का काम बहुत ही कम समय में पूरा हुआ था. इस सड़क के निर्माण के समय 122 लोगों की मौत हुई थी.
ये सड़क तिब्बत के अंदर तक जाती थी. उस समय तकनीकी रूप से मानव इतना सक्षम नहीं था. हजारों लाखों मजदूरों ने हाथों से चट्टानों को काटकर इस सड़क को बनाया था. इस सड़क का मुख्य मकसद तिब्बत के साथ व्यापार को बढ़ावा देना था. एक वो समय था जब तिब्बत और भारत के बीच रोटी बेटी का संबंध था.
तिब्बत के व्यापारी भारत में ऊन,रेशम,मखमल,तिब्बती नक्काशी की वस्तुएं, चमड़े से बने जूते चप्पल का व्यापार करते थे, जबकि भारत के व्यपारी तिब्बत में चावल,नमक, तेल राजमाह जैसी चीजों का व्यापार तिब्बत में करते थे. तिब्बत से व्यापारी इस सड़क मार्ग से लवी मेले में व्यापार के लिए आते थे. इस सड़क के बनने से इस व्यापार में और तेजी आई. सड़क किनारे कई नई गांव बसे. अंग्रेजों ने इसे सिल्क रूट का नाम दिया था.