शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने अनुबंध सेवा को पेंशन से जुड़े लाभ और सालाना वेतन में बढ़ोतरी के लिए गिने जाने के आदेश जारी किए हैं. अदालत ने शिक्षा विभाग को आदेश दिए हैं कि वह याचिकाकर्ता लेक्चरर की अनुबंध सेवा को पेंशन से जुड़े लाभ सहित वार्षिक वेतन वृद्धि के लिए गिने. हालांकि हाईकोर्ट ने वित्तीय लाभ याचिका दायर करने से तीन वर्ष पहले तक सीमित करने के आदेश भी दिए हैं. अनुबंध सेवाओं को लेकर ये अहम आदेश है.
मामले के अनुसार प्रार्थी की नियुक्ति शिक्षा विभाग में लेक्चरर के रूप में 29 सितंबर 2000 को हुई थी. करीब नौ साल की सेवाओं के बाद प्रार्थी की सेवाएं 25 नवंबर 2009 को नियमित की गई थी. इसके छह साल बाद यानी 31 मार्च 2015 को प्रार्थी लेक्चरर सेवानिवृत हो गई. सेवानिवृत हो जाने के बाद 13 जून 2016 को प्रार्थी ने अनुबन्ध सेवा को पेंशन से जुड़े विभिन्न लाभ सहित वार्षिक वेतन वृद्धि के लिए आंकने को लेकर शिक्षा विभाग के समक्ष प्रतिवेदन किया.
प्रार्थी के प्रतिवेदन पर जब शिक्षा विभाग ने जब कोई कार्रवाई नहीं की तो मजबूर होकर उसे तत्कालीन दौर में सक्रिय हिमाचल प्रदेश राज्य प्रशासनिक ट्रिब्यूनल में मामला दायर करना पड़ा. हिमाचल में प्रशासनिक ट्रिब्यूनल बंद होने पर मामला हाईकोर्ट पहुंचा. इस सारी अवधि में दुखद तथ्य ये रहा कि प्रार्थी की मृत्यु हो गई. उसके बाद प्रार्थी लेक्चरर के कानूनी वारिसों ने हक की इस लड़ाई को आगे बढ़ाया. मामले में अदालत के समक्ष बताया गया कि कुल नौ वर्ष के अनुबंध सेवाकाल के बाद वास्तविक प्रार्थी की सेवाओं को नियमित किया गया था. आरोप लगाया गया था कि उनकी अनुबंध के आधार पर दी गई सेवाओं को सीनियोरिटी के लिए नहीं गिना जा रहा है.
याचिकाकर्ताओं कोर्ट से गुहार लगाई थी कि उनकी अनुबंध सेवाकाल को सीनियोरिटी, पेंशन और वार्षिक वेतन वृद्धि के लिए गिना जाए. मामले की सुनवाई कर रही हिमाचल हाईकोर्ट की खंडपीठ ने राज्य उच्च न्यायालय सहित सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों को जांचा और उसके बाद ये पाया गया कि सुप्रीम कोर्ट ने अनुबंध सेवा को न केवल पेंशन से जुड़े लाभों के लिए गिनने के निर्णय दिए हैं, बल्कि उस कार्यकाल को वार्षिक वेतन वृद्धि के लिए गिनने के निर्णय भी पारित किए हुए हैं. उल्लेखनीय है कि हिमाचल प्रदेश में अनुबंध के रूप में नियुक्त किए गए कर्मचारियों से जुड़े ऐसे मामले निरंतर अदालतों में आ रहे हैं.
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