शिमला: सात साल तक तथ्यों और सबूतों को न्याय के तरजू में तोलने के बाद निर्भया केस के चारों दरिंदों को 20 मार्च को फांसी पर लटका दिया गया. इसके लिए निर्भया की मां ने दिन-रात तक लड़ाई लड़ी. कई बार मायूस भी हुई, लेकिन 20 मार्च को सुबह की पहली किरण न्याय की रोशनी लेकर आई.
हिमाचल की एक और निर्भया यानी गुड़िया की रूह पिछले 4 सालों से न्याय मांग रही है. ना जांच एजेंसिया ना सरकारें अभी तक गुड़िया को न्याय दिलवा पाई हैं. गुड़िया के माता-पिता आज भी बेटी को न्याय दिलवाने के लिए सरकार से लेकर जांच एंजेंसियों की चौखट पर माथा पटक रहे हैं.
कोटखाई के हलाइला में दसवीं कक्षा की छात्रा के साथ चार जुलाई 2017 को गैंगरेप हुआ. छात्रा का नग्न लाश छह जुलाई को कोटखाई के दांदी जंगल में एक गड्ढे में पड़ी मिली. लाश देखने से साफ पता चल रहा था कि उसके साथ दरिंदगी की गई है.
इस जघन्या घटना से समूचे प्रदेश में रोष की लहर दौड़ गई. राज्य पुलिस ने एसआईटी गठित कर उसे जांच का जिम्मा दिया.एसआईटी की कमान तेजतर्रार कहे जाने वाले आईजी रैंक के आईपीएस अफसर जहूर एच जैदी को सौंपी गई.
अभी जनता गुस्से में थी कि गुरूवार तेरह जुलाई को पुलिस ने केस सुलझाने का दावा कर दिया.बाकायदा पुलिस मुख्यालय में प्रेस कान्फ्रेंस की गई, जिसमें जहूर एच जैदी ने सिलसिलेवार बताया कि कैसे पुलिस ने केस सुलझाया.इस केस में छह लोगों को दोषी बताते हुए गिरफ्तार किया गया.
प्रेस कान्फ्रेंस में ये कहा था आईजी और डीजीपी ने
आईजी जैदी के अनुसार छात्रा के साथ दुष्कर्म और हत्या की गुत्थी निर्भया केस से भी अधिक उलझी हुई थी. निर्भया केस में कई तरह के साक्ष्य मौजूद थे. उस केस में निर्भया का मित्र चश्मदीद था, सीसीटीवी फुटेज थी और खुद लडक़ी का इकबालिया बयान भी था, लेकिन कोटखाई वाला मामला इससे बिल्कुल अलग था. यहां न तो कोई चश्मदीद था, न ही कोई इस तरह का क्लू कि जिससे मदद मिल पाती.
ये तो तय था कि ऐसा जघन्य अपराध करने के लिए कोई बाहर से नहीं आएगा.पुलिस को स्थानीय लोगों पर ही शक था. आधुनिक जांच तरीकों का प्रयोग करते हुए कॉल डिटेल व मोबाइल लोकेशन, डंप डाटा आदि की परख की गई.पुख्ता सुबूत मिलने पर ही संदिग्धों पर हाथ डाला गया. कुल 84 लोगों को राडार पर रखा गया था. छात्रा के स्कूल में भी पूछताछ की गई.
पुलिस ने जांच में पाया कि यह अपरच्यूनिटी क्राइम था.यानी अवसर मिला तो दुष्कर्म व अपराध कर डाला.दरिंदों ने अपनी हवस मिटाने के लिए ये अपराध किया. ये कोई सुनियोजित अपराध नहीं था. सभी छह दरिंदे नशे में थे.आईपीएस जैदी ने कहा था कि उनकी टीम शुरू से ही इन बिंदुओं पर काम कर रही थी. जैदी ने कहा था कि लड़की के साथ अप्राकृतिक दुराचार भी किया गया.जंगल में ही रेप किया गया और दस फीट की दूरी पर लाश फैंक दी.
पुलिस के अनुसार मुख्य आरोपी राजेंद्र सिंह उर्फ राजू छात्रा को पहले से जानता था.गुरूवार 13 जुलाई की प्रेस वार्ता में डीजीपी सोमेश गोयल ने वैज्ञानिक तरीकों से जांच करने और सुबूत जुटाकर दोषियों को धर दबोचने के लिए आईपीएस जहूर जैदी व उनकी टीम को बधाई दी थी. डीजीपी ने कहा कि इस केस को सुलझाने से ये साफ हुआ है कि हिमाचल पुलिस जटिल मामलों को सुलझाने में पूरी तरह से सक्षम है.
कस्टडी में एक कथित आरोपी की मौत से पलट गया केस
छात्रा के छह आरोपियों में से एक नेपाली मूल के सूरज की कस्टडी में मौत हो गई.उसके बाद जन आक्रोश काबू से बाहर हो गया.जनता को पुलिस की भूमिका संदेदास्पद लगी. दरअसल, पुलिस टीम छह आरोपियों से जबर्दस्ती गुनाह कबूल करवाने की फिराक में थी.आनन-फानन में मीडिया के सामने खुलासा तो कर दिया गया, लेकिन जब पुलिस पर सवाल उठे तो आईजी व डीजीपी बगलें झांकने लगे थे।
जिस समय सूरज की कस्टडी में मौत हो गई तो पुलिस ने केस को दबाने के लिए उल्टा खेल खेल दिया.बस, यहीं एसआईटी और राज्य पुलिस की चालाकी फेल हो गई. बाद में जांच सीबीआई को सौंपी गई. सीबीआई की जांच शुरू होने से पहले ही आईजी जैदी व उनकी टीम अपनी खाल बचाने के लिए कसरत करती रही, लेकिन उनकी चालाकी काम नहीं आई.यही चालाकी आईजी व अन्य अफसरों को भारी पड़ी और वे जेल में पहुंच गए.
शुरू से ही संदेह में थी पुलिस की एसआईटी
एसआईटी ने बेशक केस को सुलझाने का दावा किया, लेकिन वो शुरू से ही संदेह के घेरे में थी.सीएम के फेसबुक पेज पर कुछ प्रभावशाली लोगों के फोटो वायरल हुए.वे केस के मुख्य आरोपी बताए जा रहे थे.चंद ही देर में सीएम के पेज से वो फोटो हटा लिए गए.बाद में पुलिस ने और ही लोगों को पकड़ लिया. रही-सही कसर कथित आरोपी सूरज की कस्टडी में हुई मौत ने पूरी कर दी.
पुलिस की थर्ड डिग्री ने ली सूरज की जान
सीबीआई ने केस को हाथ में लेने से पहले ही ये निर्देश जारी कर दिए थे कि सूरज का अंतिम संस्कार न किया जाए.सूरज का पहले आईजीएमसी अस्पताल में पोस्टमार्टम हुआ था. सीबीआई ने एम्स दिल्ली की टीम से पोस्टमार्टम करवाया.उस पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि सूरज की मौत बेतहाशा पिटाई के कारण आई चोटों से हुई.
सीबीआई की चार्जशीट में ये खुलासा है कि सूरज की पिटाई डीएसपी मनोज जोशी के सामने की गई थी. उसे बुरी तरह से मारा गया था.टार्चर के दौरान ही उसकी मौत हो गई. एम्स की रिपोर्ट में साफ दर्ज किया गया है कि सूरज की पीठ, जांघों, हिप्स व अन्य हिस्सों में बेरहमी से पिटाई के निशान हैं.जिन घावों से सूरज की जान गई, वे मौत से दो घंटे पहले से लेकर दो दिन पूर्व तक के हैं.जाहिर है कि सूरज को काफी समय से टार्चर किया जा रहा था.
यूं आए शिकंजे में आईजी व उनकी टीम
सीबीआई के अनुसार आईजी जैदी डीएसपी मनोज जोशी व अन्यों के साथ मिलकर सूरज की पिटाई के बाद हुई मौत को देखते हुए हत्या के सुबूत मिटाने की तैयारी में थे.उस समय शिमला के एसपी डीडब्ल्यू नेगी थे.एसपी होने के नाते वे पूरे प्रदेश में हवालात के भीतर बंद कैदियों को कस्टोडियन थे.कोटखाई के डीएसपी मनोज जोशी व एसएचओ राजेंद्र सिंह ने थाने के अन्य कर्मियों को कहा था कि इस केस को हैंडल कर लिया जाएगा, लिहाजा किसी को कुछ न बताएं.
आईजी जैदी की चालाकी बाद में फेल हो गई. थाने के संतरी दिनेश का बयान उन्होंने अपने मोबाइल में तो रिकॉर्ड कर लिया, लेकिन डीजीपी को सही तथ्य नहीं बताए.बाद में सीबीआई ने आई जैदी, एसपी नेगी, डीएसपी मनोज जोशी, संतरी दिनेश शर्मा आदि के मोबाइल का डंप डाटा, रिकार्डिंग आदि खंगाल कर उन पर हाथ डाल दिया.
सबसे बड़ा सवाल, किसके इशारे पर फंसाए गए निर्दोष
अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि छात्रा के असली गुनहगारों को पकडऩे की बजाय निर्दोष लोगों को किसके इशारे पर पकड़ा गया? कौन हैं वो प्रभावशाली लोग, जिन्हें बचाने का प्रयास किया गया. आईजी जैदी व उनकी टीम किसके डर से काम कर रही थी? सूरज से जबर्दस्ती गुनाह क्यों कुबूल करवाया जा रहा था. सूरज की मौत की असल वजह को क्यों छिपाया गया और ये कहा गया कि दो आरोपी आपस में भिड़ गए और उनकी आपसी मारपीट में सूरज की जान गई?
पुलिस की नौकरी में आईजी रैंक तक पहुंचना आसान नहीं है. एक आईपीएस अफसर के लिए ये बड़ा रैंक है.लेकिन क्या वजह रही कि आईजी जहूर एच जैदी इस कदर दबाव में थे कि गलती पर गलती करते गए.
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