कुल्लू: प्रदेश सरकार ने प्राकृतिक खेती को बड़े पैमाने पर बढ़ावा देने के लिए एक सराहनीय कदम उठाया है. किसानों को प्राकृतिक खेती की ओर प्रेरित करने के लिए सरकार ने प्राकृतिक खेती, खुशहाल किसान योजना शुरू की है. इस योजना के तहत किसानों को बड़े पैमाने पर प्रशिक्षित किया जा रहा है और घर में ही प्राकृतिक खेती के जरूरी संसाधन जुटाने के लिए हजारों रुपये का अनुदान दिया जा रहा है.
कुल्लू जिला में कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन अभिकरण (आत्मा) की प्रेरणा और प्रोत्साहन से बड़ी संख्या में किसान विशेषकर युवा प्राकृतिक खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं. इन्हीं किसानों में बजौरा के नरैश गांव के दीवान चंद ठाकुर भी एक हैं. कई सालों से अपने खेतों और बगीचों में महंगे एवं जहरीले रासायनिक उर्वरकों-कीटनाशकों का इस्तेमाल कर रहे दीवान चंद का खेती का खर्चा साल दर साल बढ़ता ही रहा था. साथ ही पैदावार में कोई खास बढ़त नहीं हो पा रही थी. जमीन और फल-सब्जियों में कीटनाशकों के जहर की मात्रा बढ़ती ही जा रही थी.
साल 2018 में कृषि विभाग और (आत्मा) के अधिकारियों के संपर्क में आने पर दीवान चंद को प्राकृतिक खेती और सरकार की योजना का पता चला. उन्होंने डॉ. सुभाष पालेकर से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद गेहूं, जौ, मटर, माश और कुल्थ के खेतों में केवल गोबर, गोमूत्र और घर में उपलब्ध अन्य सामग्री से तैयार देसी खाद का ही इस्तेमाल किया. गोबर-गोमूत्र इकठ्ठा करने के लिए उन्होंने आतमा परियोजना से अनुदान प्राप्त करके गौशाला के फर्श को पक्का करवाया. बता दें कि खाद तैयार करने के लिए ड्रम पर भी दीवान चंद को सब्सिडी मिली.
जीवामृत और धनजीवामृत के इस्तेमाल से दीवान चंद के खेतों में विभिन्न फसलों की पैदावार में वृद्धि हुई, जबकि खेती का खर्चा लगभग न के बराबर ही रहा. इसी जमीन पर वह प्रति बीघा लगभग साढ़े पांच हजार रुपये के रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों का इस्तेमाल करते थे और पैदावार भी कम होती थी. प्राकृतिक खेती से दीवान चंद के खेतों की पैदावार में 30 से 40 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हुई. अब वह अपनी बाकी बची जमीन पर भी प्राकृतिक खेती करने जा रहे हैं और अन्य किसानों को भी प्रेरित कर रहे हैं.
इसी तरह, मणिकर्ण घाटी में शाट के पास शौरन गांव के विजय सिंह भी आतमा परियोजना की प्रेरणा और अनुदान से मई 2018 से प्राकृतिक खेती कर रहे हैं. उन्होंने जून 2019 में पालमपुर में डॉ. सुभाष पालेकर से भी प्रशिक्षण प्राप्त किया. पहले विजय सिंह लगभग 15 बीघा जमीन पर करीब 41 हजार रुपये के रासायनिक उरर्वक और कीटनाशकों का इस्तेमाल करते थे लेकिन पिछले सीजन में विजय सिंह ने घर पर ही जीवामृत और घनजीवामृत खाद एवं कीटनाशक तैयार किया. इस पर मात्र 4800 रुपये खर्च आया. इससे उनकी पैदावार और आय में भारी वृद्धि हुई. रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग करने पर विजय सिंह को एक सीजन में ढाई से तीन लाख रुपये आय हो रही थी, जबकि प्राकृतिक खेती से उसकी आय 4 से साढ़े चार लाख तक पहुंच गई. विजय सिंह ने कहा कि प्राकृतिक खेती ने उनकी तकदीर ही बदल दी है.