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'लोक साहित्य में लोक भाषा का योगदान' विषय पर नौणी पंचायत में कवि सम्मेलन और परिचर्चा का आयोजन

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Published : Dec 20, 2021, 4:07 PM IST

नौणी पंचायत में 'लोक साहित्य में लोक भाषा का योगदान' को लेकर परिचर्चा और कवि सम्मेलन का आयोजन हुआ. इस दौरान साहित्यकारों ने बघाटी व बाघली बोलियों के सरंक्षण पर डाला. कार्यक्रम में बतौर मुख्यतिथि पहुंचे डॉ. यशवंतत सिंह परमार पीठ के अध्यक्ष डॉ. ओमप्रकाश शर्मा ने (Kavi Sammelan in Nauni) हिमाचल की लोक संस्कृति, लोक भाषा और लोक कला के संरक्षण पर (Himachal Folk Culture) बल दिया.

Kavi Sammelan in Nauni
नौणी पंचायत में कवि सम्मेलन

सोलन: जिला मुख्यालय के साथ लगती निर्मल ग्राम पंचायत नौणी में हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा लोक भाषा, लोक कला और लोक संस्कृति के संरक्षण को लेकर परिचर्चा और कवि सम्मेलन का (Kavi Sammelan in Nauni) आयोजन हुआ. हिमाचल कला संस्कृति एवं भाषा अकादमी शिमला, डॉ. यशवंत सिंह परमार पीठ, हिमाचल विश्वविद्यालय शिमला और सोलन साहित्यिक संगम के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम में 'लोक साहित्य में लोक भाषा का योगदान' विषय पर परिचर्चा कार्यक्रम का आयोजन किया गया. जिसमें परमार पीठ के अध्यक्ष डॉ. ओमप्रकाश शर्मा मुख्यातिथि के रूप में उपस्थित हुए.


इस समारोह मे सोलन के 25 साहित्कारों ने भाग लिया और बघाटी और बाघली बोलियों के संरक्षण पर प्रकाश डाला. डॉ. ओमप्रकाश ने जानकारी देते हुए बताया के आज के इस (Nauni Panchayat Sahitya Sammelan) कार्यक्रम में लोक साहित्य और लोक बोली को लेकर गांव के लोग चर्चा कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि पहाड़ी भाषा के महत्वपूर्ण पक्ष को किस तरह से आगामी पीढ़ी तक (Nauni Panchayat Sahitya Sammelan) पहुंचाया जाए इसको लेकर भी विचार-विमर्श किया जा रहा है ताकि आने वाली पीढ़ी हिमाचल की लोक संस्कृति, लोक भाषा और लोक कला को समझ कर (Himachal Folk Culture) उसे आगे ले जा सके.

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डॉ. ओमप्रकाश ने हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय और परमार पीठ की विभिन्न योजनाओं की जानकारी देते हुए बताया कि स्नातक तथा स्नातकोत्तर छात्र छात्राएं हिमाचली पहाड़ी भाषा में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से डिप्लोमा कर (Diploma in Pahari Language) सकेंगे. स्नातक के लिए 23 वर्ष तक की आयु और स्नातकोत्तर किसी भी आयु के लोग डिप्लोमा कर सकते हैं. उन्होंने बताया कि लोक भाषा लोक संस्कृति तथा लोक कलाओं के संरक्षण में हमारी लोक भाषाओं का योगदान रहा है और आगे भी रहेगा.

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