शिमला :कोरोना महामारी के बीच ज्यादातर लोग घरों में आराम से रह रहे हैं, लेकिन एक वर्ग ऐसा भी है जो अपनी जिंदगी को जोखिम में डाल कर काम कर रहा है. ऐसे लोगों को सरकार कोरोना वॉरियर्स का नाम दे रही है और इन्हें सम्मानित भी किया जा रहा है.
लेकिन ताज्जुब की बात है प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल आईजीएमसी में तैनात सफाई कर्मचारी मूलभूत सुविधाओं से जूझ रहे हैं. इन्हें ना तो प्रशासन से सहयोग मिल रहा है न ही कोई उनकी समस्या का समाधान के लिए आगे रहा है. ऐसे में सफाई कर्मियों ने अपनी मांगों को लेकर प्रशासन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है.
बुधवार को आईजीएमसी में तैनात सफाई कर्मचारी 2 घंटे काम बंद रख कर हड़ताल पर चले गए. इसके बाद प्रतिनिधि मंडल एमएस डॉ. जनक राज से मिला और अपनी मांगे रखी उसके बाद काम शुरू किया, लेकिन चेतावनी भी दी है कि यदि उनकी मांगे नहीं मानी गई तो उन्हें फिर से हड़ताल के लिए मजबूर होना पड़ेगा.
आईजीएमसी सफाई कर्मचारी यूनियन के अध्यक्ष पम्मी ने बताया कि न तो उन्हें ड्रेस की सिलाई दी जा रही है, ना जॉइनिंग लेटर और न ही सैलरी स्लिप दी जाती है. उनका कहना था कि सफाई कर्मियों को मात्र 6951 रुपये मासिक वेतन दिया जाता है, जिसमें गुजारा करना बेहद मुश्किल है. वहीं, कोरोना संकट की घड़ी में उन्हें परेशानी उठानी पड़ रही है. रोज सुनने में आता है कि सफाई वालों को राशन दिया जा रहा है. उन्हें सम्मानित किया जा रहा लेकिन, अस्पताल में तो किसी को न राशन मिला उल्टा उनके वेतन से ईपीएफ काट दिया गया. जबकि सरकार ने कहा था कि कोरोना महामारी के दौरान ईपीएफ कर्मचारी के वेतन से नहीं कटेगा.
यूनियन के अध्यक्ष पम्मी का आरोप है कि जूते और स्वेटर भी नहीं दिये जाते. वहीं, मास्क लगाना जरूरी कर दिया है, लेकिन उन्हें कुल 12 मास्क दिए हैं जो खत्म हो गए हैं क्योंकि उन्हें इंफेक्शन वाले जगह भी सफाई करनी पड़ती है जहां मास्क खराब हो जाता है और दूसरा मास्क पहनना पड़ता है. सबसे बड़ी समस्या यह है कि उनसे वार्ड बॉय का काम भी लिया जाता है. जिससे उन्हें डबल काम करना पड़ता है.
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