कुल्लू: जिला कुल्लू में प्रदेश का दूसरा मिनी स्विट्जरलैंड है. लगभग 228 बीघा में फैला शांघड़ मैदान कुल्लू जिला का खज्जियार या भारत का दूसरा मिनी स्विट्जरलैंड भी कहा जाता है. अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध जिला कुल्लू की सैंज घाटी का शांघड़ मैदान खूबसूरती के लिहाज से यूरोप के देश स्विजरलैंड से कम नहीं है. यहां का मौसम, चीड़ और देवदार के ऊंचे हरे भरे पेड़, हरियाली और पहाड़ आपको स्विजरलैंड का एहसास कराती हैं.
शांघड़ मैदान के बारे में बहुत से रोचक बातें हैं जिन्हें जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे. दरअसल शांघड़ मैदान जिला कुल्लू के स्थानीय देवता शंगचुल महादेव का आवास स्थल है. इस मैदान पर देवता के आदेशों की पालना नहीं होने पर स्थानीय लोगों को इसके कोप-भाजन का शिकार होना पड़ता है. मैदान में किसी तरह की अपवित्रता न फैले, इसके लिए शंगचुल महादेव मंदिर कमेटी ने कायदे-कानून भी बनाए हैं. अगर यहां आने वाले इनकी पालना नहीं करते तो उन्हें जुर्माने या कानूनी कार्रवाई तक भुगतनी पड़ सकती है.
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कहा जाता है कि शांघड़ मैदान का इतिहास पांडवों के जीवन काल से जुड़ा है. अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने कुछ समय शांघड़ में भी बिताया. इस दौरान उन्होंने यहां धान की खेती के लिए मिट्टी छानकर खेत तैयार किए. वे खेत आज भी विशाल शांघड़ मैदान के रूप में पहले के ही जैसे हैं.
देश-विदेश के पर्यटकों के लिए शांत सैरगाह के रूप में शांघड़ को जाना जाता है. यहां की एकांत स्थली को कई शोधार्थियों ने अपने शोध के लिए चुना है. कुल्लू से 58 किलोमीटर की दूरी पर बसा शांघड़ गांव सैंज घाटी के अंतिम छोर पर है. एक हजार से अधिक आबादी वाले शांघड़ को भी अपने मैदान से पहचान मिली है. यही नहीं, सैंज घाटी के लिए शांघड़ से पर्यटन के नए आयाम स्थापित हुए हैं. गर्मियों के दिनों में यहां ज्यादा पर्यटक आते हैं, जिससे यहां का पर्यटन कारोबार भी चरम पर पहुंच जाता है. देवता की पूरी जमीन का आधा हिस्सा ऐसा है जो ब्राह्मण, पुजारी, मुजारों, बजंतरी और गुर सहित अन्य देव कारकूनों को दिया गया है. वहीं, आधा हिस्सा गो चारे के लिए रखा गया है.