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देव धुनों से सराबोर हुआ जिला कुल्लू, बिना इलाज कई असाध्य रोग के ठीक होने का दावा

दशहरा उत्सव में प्रतिदिन ढालपुर में सैकड़ों देव-देवताओं के अस्थायी शिविरों में दर्जनों वाद्य यंत्रों की धुन बजने से पूरा ढालपुर मैदान पुरातन धुनों से सराबोर हो रहा है. पुरातन वाद्य यंत्रों से जो धुन निकलती है, उस धुन से लोगों के कई रोग बिना इलाज के ही दूर हो जाते हैं. कहा जाता है कि पुरातन धुन के बजने से दैवीय शक्तियां इकट्ठी हो जाती हैं, जिससे असाध्य रोग से कोई भी ग्रसित हो तो ये धुनें कान में पड़ते ही उन रोगों से निजात मिल जाती है.

Lord Narsingh Jaleb in Kullu Dussehra festival
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Published : Oct 20, 2021, 1:56 PM IST

Updated : Oct 20, 2021, 6:57 PM IST

कुल्लू: जिला कुल्लू के मुख्यालय ढालपुर में जहां अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव धूमधाम से मनाया जा रहा है. वहीं, रोजाना देव परंपराओं का भी पालन किया जा रहा है. भगवान रघुनाथ का जहां रोजाना नया श्रृंगार किया जा रहा है तो वहीं, शाम के समय भगवान नरसिंह की जलेब धूमधाम से निकाली जा रही है.

भगवान नरसिंह की जलेब में रोजाना शाम के समय राजा की चांननी से शुरू होते हुए पूरे कुल्लू शहर की परिक्रमा करती है. जलेब में पालकी पर भगवान रघुनाथ के छड़ी बरदार महेश्वर सिंह के साथ घाटी के अन्य देवी देवता भी शामिल होते हैं.

खास बात यह है कि हर दिन जिले में घाटी के अलग-अलग इलाकों से आए हुए देवी देवता भाग लेते हैं. ढोल नगाड़ों की धुन पर देवताओं के हारियान झूमते नाचते गाते हुए इस जिले की परिक्रमा को पूरी करते हैं. इस परंपरा को कुछ लोग जहां हैरतअंगेज बताते हैं वहीं, कुल्लू घाटी के कुछ लोग इसे सांस्कृतिक धरोहर बताकर इसे अपना गौरव मानते हैं.

राजाओं की रियासत के समय अनेक महत्व के कारण यह जलेब निकाली जाती थी, जिसमें सर्वप्रथम सुरक्षा की दृष्टि से इस जलेब के महत्व को देखा जाता था, क्योंकि राजा की रियासत के समय कुल्लू घाटी के करीब सभी देवी-देवता दशहरे में भाग लेने के ढालपुर पहुंचते थे और इन देवताओं के साथ आने वाले अधिकतर लोग अपने देवताओं के साथ ही रहते थे.

देवताओं के जलेब में जाने का अर्थ था कि कहीं आसुरी शक्तियों का आक्रमण दशहरा में शामिल हुए देव समाज पर न हो. वहीं, राजा का जलेब में जाने का महत्व यह माना जाता था कि एक तो राजा दशहरे में आई प्रजा को आम दर्शन दे सके और दूसरा राजा दशहरे की प्रशासनिक व्यवस्था का स्वयं अवलोकन कर सके. इसी महत्व के कारण यह जलेब निकाली जाती है.

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वहीं, भगवान रघुनाथ के छड़ी बरदार महेश्वर सिंह ने कहा कि राजा की जलेब कुल्लू शहर की रक्षा के लिए निकाली जाती है और आज भी इसका पारंपरिक तरीके से पालन किया जा रहा है. देव जनमानस से जुड़े लोगों की इसमें काफी श्रद्धा है और देवी देवता भी इस जलेब के माध्यम से लोगों की रक्षा करते हैं.

गौर रहे कि दशहरा उत्सव में प्रतिदिन ढालपुर में सैकड़ों देव-देवताओं के अस्थायी शिविरों में दर्जनों वाद्य यंत्रों की धुन बजने से पूरा ढालपुर मैदान पुरातन धुनों से सराबोर हो रहा है. कहा जाता है कि पुरातन वाद्य यंत्रों से जो धुन निकलती है, उस धुन से लोगों के कई रोग बिना इलाज के ही दूर हो जाते हैं.

मान्यता है कि पुरातन धुन के बजने से दैवीय शक्तियां इकट्ठी हो जाती हैं, जिससे असाध्य रोग से कोई भी ग्रसित हो तो ये धुनें कान में पड़ते ही उन रोगों से निजात मिल जाती है. यह भारतीय संगीत अनुसंधान के विशेषज्ञ द्वारा भी शोध किया गया है कि यदि कोई असाध्य रोग से ग्रसित हो तो उसे एक अंधेरे और एकांत कमरे में बंद करके इन वाद्य यंत्रों की स्वर लहरियों को बजाया जाए तो कई रोगों की छुटकारा मिल जाता है.

Disclaimer: उपरोक्त लेख में दी गई मान्यताओं की ईटीवी भारत पुष्टि नहीं करता है.

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Last Updated : Oct 20, 2021, 6:57 PM IST

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