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रेवाड़ी: राजा मित्रसेन का स्मारक बनाने के लिए सीएम के नाम ज्ञापन - raja mitrasen memorial demand rewari

रेवाड़ी के लोगों ने मुख्यमंत्री मनोहर से राजा मित्रसेन का स्मारक बनाने अपील की. इसी के चलते लोगों ने बीजेपी नेता सतीश खोला को मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा.

people of rewari submitted memorandum to chief minister manohar lal for memorial of raja mitrasen in rewari
रेवाड़ी के लोगों ने राजा मित्रसेन का स्मारक बनाने के लिए मुख्यमंत्री के नाम दिया ज्ञापन

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Published : Oct 30, 2020, 8:11 PM IST

रेवाड़ी:राजा मित्रसेन का स्मारक स्थल रेवाड़ी या उनके जन्म स्थान गोकलगढ़ में बनाने की मांग को लेकर एक मांग पत्र मुख्यमंत्री मनोहर लाल को भेजा गया है. शहर के सेक्टर-1 में आयोजित कार्यक्रम में भाजपा नेता सतीश खोला को लोगों ने मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन दिया. जिसमें लोगों ने कहा कि राजा मित्रसेन की वीरता की अनूठी कहानी है, जिसका अनेकों इतिहासकारों ने समय-समय पर उल्लेख किया है, लेकिन राजा मित्रसेन का कोई राजनीतिक वारिस न होने के कारण अभी तक कहीं भी उचित स्थान नहीं मिला.

राजा मित्रसेन की कहानी

राजा मित्रसेन के बारे में कहा जाता था कि वो जिधर भी बढ़ते, वहां अपनी जीत का डंका बजा कर ही वापस लौटा करते थे. 1770-80 के आसपास की बात है कि रेवाड़ी रियासत के राजा तुलसीराम की मृत्यु के बाद उनके बेटे मित्रसेन ने बागडोर संभाली. मित्रसेन ने अपने पराक्रम और वीरता से सीमाओं का विस्तार करना शुरू कर दिया. 1781 में जयपुर-रेवाड़ी रियासत सीमा पर बहरोड और कोटपुतली को जीतकर रेवाड़ी रियासत में मिलाया.

राजा मित्रसेन का स्मारक बनाने के लिए सीएम के नाम ज्ञापन

इस हमले से नाराज हुए जयपुर के महाराज ने एक विशाल सेना लेकर रेवाड़ी पर धावा बोल दिया. मित्र सेन की सेना ने गांव मांडल के पास जयपुर सेना को पूरी तरह से परास्त कर दिया. राजा मित्रसेन की सेना ने इसके बाद नारनौल पर आक्रमण किया और विजय हासिल कर अपने राज्य में मिलाया. गढ़ी बोलनी का सरदार गंगा किशन मराठों से जा मिला. मराठा सरदार महादजी शिंदे ने साठगांठ करके रेवाड़ी पर आक्रमण किया.

इस युद्ध में मराठा बुरी तरह से पराजित हुए एक साल बाद मराठों ने तैयारी के साथ फिर हमला बोला, लेकिन उन्हें इस बार भी मुंह की खानी पड़ी. ये वो समय था. जब मराठों की तूती बोलती थी. लगातार हार से बौखलाए मराठों ने राजा मित्रसेन की पीठ में छुरा भोंकने का काम किया. मराठों ने साजिश के तहत मित्रसेन को संदेश भेजा. जिसमें लिखा था कि हमारा मकसद भारत में हिंदू राज्य स्थापित करना है. आपको बराबरी का सम्मान मिलेगा.

मित्रसेन ने ये प्रस्ताव स्वीकार कर लिया, लेकिन उसकी रानी मां बहन सभी ने इस प्रस्ताव को धोखा बताया. गोकलगढ़ और निशाना के बीच में ठंड के स्थान पर मराठों ने तंबू गाड़े थे और वहीं पर मित्रसेन को मिलने के लिए बुलाया. वहां पहले से घात लगाए बैठे मराठा सैनिकों ने राजा मित्रसेन पर धोखे से हमला बोल सिर काट दिया.

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लोगों ने की स्मारक बनाने की मांग

हरियाणा के इतिहास एवं संस्कृति अकादमी के निदेशक डॉ. केसी यादव ने अपनी पुस्तक अहिरवार इतिहास एवं संस्कृति में लिखा है कि युद्ध के बाद मराठों ने राजा मित्र सेन के पूरे परिवार को खत्म कर दिया. उन्होंने सीएम से अनुरोध किया कि राजा मित्रसेन का स्मारक स्थल बनाकर सरकार द्वारा उनको इतिहास में उचित स्थान दिया जाए.

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