रेवाड़ी:राजा मित्रसेन का स्मारक स्थल रेवाड़ी या उनके जन्म स्थान गोकलगढ़ में बनाने की मांग को लेकर एक मांग पत्र मुख्यमंत्री मनोहर लाल को भेजा गया है. शहर के सेक्टर-1 में आयोजित कार्यक्रम में भाजपा नेता सतीश खोला को लोगों ने मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन दिया. जिसमें लोगों ने कहा कि राजा मित्रसेन की वीरता की अनूठी कहानी है, जिसका अनेकों इतिहासकारों ने समय-समय पर उल्लेख किया है, लेकिन राजा मित्रसेन का कोई राजनीतिक वारिस न होने के कारण अभी तक कहीं भी उचित स्थान नहीं मिला.
राजा मित्रसेन की कहानी
राजा मित्रसेन के बारे में कहा जाता था कि वो जिधर भी बढ़ते, वहां अपनी जीत का डंका बजा कर ही वापस लौटा करते थे. 1770-80 के आसपास की बात है कि रेवाड़ी रियासत के राजा तुलसीराम की मृत्यु के बाद उनके बेटे मित्रसेन ने बागडोर संभाली. मित्रसेन ने अपने पराक्रम और वीरता से सीमाओं का विस्तार करना शुरू कर दिया. 1781 में जयपुर-रेवाड़ी रियासत सीमा पर बहरोड और कोटपुतली को जीतकर रेवाड़ी रियासत में मिलाया.
इस हमले से नाराज हुए जयपुर के महाराज ने एक विशाल सेना लेकर रेवाड़ी पर धावा बोल दिया. मित्र सेन की सेना ने गांव मांडल के पास जयपुर सेना को पूरी तरह से परास्त कर दिया. राजा मित्रसेन की सेना ने इसके बाद नारनौल पर आक्रमण किया और विजय हासिल कर अपने राज्य में मिलाया. गढ़ी बोलनी का सरदार गंगा किशन मराठों से जा मिला. मराठा सरदार महादजी शिंदे ने साठगांठ करके रेवाड़ी पर आक्रमण किया.