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खंडहर में बदल रही हेमू की हवेली, इतिहास की कई अनकही दास्तां दर्ज हैं दिवारों में

पुरातत्व विभाग और सरकारों की अनदेखी के चलते रेवाड़ी के कुतुबपुर में बनी हवेली खंडहर में बदल गई है. ठीक उसी तरह से जैसे इतिहास में 22 लड़ाईयां जीतने वाले हेमू का जिक्र है. हमारे इतिहास में भी हेमू के बारे में उनकी जिंदगी की कहानियों के खंडहर को ही बताया गया है.

खंडहर में बदल रही हेमू की हवेली, इतिहास की कई अनकही दास्तां दर्ज हैं दिवारों में

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Published : Jul 23, 2019, 6:22 PM IST

रेवाड़ीःजिले के कुतुबपुर में बनी एक हवेली एक ऐसी दास्तां को अपने आप में समेटे हैं. जिसका जिक्र हमारी इतिहास में आधी अधूरी है. दास्तां है, हेमचंद्र विक्रमादित्य यानी हेमू की.

1501ई. में राजस्थान के अलवर के माछेरी गांव में जन्म लेने वाले हेमचंद्र विक्रमादित्य 1515 ई. में रेवाड़ी के कुतुबपुर में बनी अपनी बहन की हवेली मेंआकर रहने लगे और यहीं पर उन्होंने शिक्षा ग्रहण की.

लेकिन पुरातत्व विभाग और सरकारों की अनदेखी के चलते रेवाड़ी के कुतुबपुर में बनी हवेली खंडहर में बदल गई है. ठीक उसी तरह से जैसे इतिहास में 22 लड़ाईयां जीतने वाले हेमू का जिक्र है. हमारे इतिहास में भी हेमू के बारे में उनकी जिंदगी की कहानियों के खंडहर को ही बताया गया है.

हेमचंद्र विक्रमादित्य (हेमू)

  • हेमू का जन्म 1501 ई. में राजस्थान के अलवर जिले के माछेरी गांव में हुआ था.
  • 1515 ई. में हेमू रेवाड़ी के कुतुबपुर में अपनी बहन के यहां आकर रहने लगा.
  • अपनी बहन के यहां रहकर ही हेमू ने शिक्षा प्राप्त की.
  • कुछ लोगों का मानना है कि शुरुआत में हेमू उत्तर भारत में नमक की सप्लाई करता था, लेकिन यह सही नहीं है.
  • हेमू शोरा और तोपों का व्यापारी था, जिन्हें वह शेरशाह सूरी को सप्लाई करता था.
  • शोरे का प्रयोग तोप के गोलों में किया जाता था.
  • हेमू शोरे का व्यापार पुर्तगाल से करता था.
  • भारत में सबसे पहले तोपों के इस्तेमाल का श्रेय हेमू को ही दिया जाता है.
  • शोरे की बदौलत ही पूरे उत्तर भारत में हेमू ने अपने आपको स्थापित किया.
    क्लिक कर देखें वीडियो.

1540 ई. में शेरशाह सूरी की मृत्यु के बाद इस्लाम शाह गद्दी पर बैठा, उसने हेमू को अपना एडवाइजर बनाया. इस्लाम शाह के शासन काल में हेमू ने अलग-अलग तरह की जिम्मेदारियां निभाई. जिनमें आंतरिक प्रशासन से लेकर सेना से जुड़े काम-काज तक शामिल रहे. हेमू ने इस्लाम शाह के लिए राजदूत का काम भी किया था. वह इस्लाम शाह का दूत बनकर काबूल में हुमायूं से बातचीत करने भी गया थे.

इस्लाम शाह की मृत्यु के बाद आदिल शाह दिल्ली की गद्दी पर बैठा, जो अयोग्य साबित हुआ, उसके बाद शासन की जिम्मेदारी हेमचंद्र विक्रमादित्य यानी हेमू पर आ गई.

1553 से लेकर 1556 तक का समय हेमू का रहा. जिसमें उन्होंने 22 लड़ाईयां लड़ी. सबसे पहली लड़ाई उन्होंने अजमेर में लड़ी थी, वहीं से हेमू की जीत का सिलसिला शुरू हुआ. उसके बाद फिर हेमू ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और जीत दर जीत हासिल करता चला गया. ग्वालियर, आगरा के बाद दिल्ली पर जीत हासिल कर हेमू ने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की. दिल्ली में हेमू ने अकबर की सेना को हराया था. जिसके बाद मुगलों में भी हेमू का खौफ घर कर गया था. उसके बाद दिल्ली के सिंहासन पर हेमू का विधि विधान के साथ राज्यभिषेक किया गया.

हेमू के दिल्ली की गद्दी पर बैठने के बाद 1556 में पानीपत की दूसरी लड़ाई हुई. जिसमें हेमू ने मुगलों की 10 हजार सेना का डटकर मुकाबला किया और जीत के करीब पहुच गया. लेकिन तभी एक मुगल सैनिक की तीर हेमू की आंख में लग गई. आंख में तीर लगने के बाद भी हेमू लड़ता रहा, लेकिन ज्यादा खून बह जाने के चलते बेसुध होकर गिर पड़ा. जिसके बाद मुगल सेना ने हेमू को बंदी बना लिया और बेसुध हालत में ही हेमू का सिर कलम कर दिया गया.

लेकिन इतिहास में भी शायद हेमू के साथ न्याय नहीं हो पाया, ना ही पुरातत्व विभाग ने ही हेमू की हवेली के रखरखाव के बारे में सोचा. जिसकी बदौलत हवेली आज खंडहर में तब्दील होती जा रही है और हवेली की आसपास की जगह पर अतिक्रमण होता जा रहा है और गंदगी के ढेर लगे हुए हैं.

हेमचंद्र विक्रमादित्य फाउंडेशन बनाएगा रिसर्च म्यूजियम

लेकिन अब हेमचन्द्र विक्रमादित्य फाउंडेशन ने हेमू की विरासत को सहेजने की जिम्मेदारी उठाई है. हवेली की रिपेयरिंग कराई जा रही है और फाउंडेशन का दावा है कि हवेली में हेमू की याद में रिसर्च म्यूजियम बनाया जाएगा. जिसमें हेमू से जुड़े तथ्यों और बातों की जानकारी दी जाएगी.

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