रेवाड़ीःजिले के कुतुबपुर में बनी एक हवेली एक ऐसी दास्तां को अपने आप में समेटे हैं. जिसका जिक्र हमारी इतिहास में आधी अधूरी है. दास्तां है, हेमचंद्र विक्रमादित्य यानी हेमू की.
1501ई. में राजस्थान के अलवर के माछेरी गांव में जन्म लेने वाले हेमचंद्र विक्रमादित्य 1515 ई. में रेवाड़ी के कुतुबपुर में बनी अपनी बहन की हवेली मेंआकर रहने लगे और यहीं पर उन्होंने शिक्षा ग्रहण की.
लेकिन पुरातत्व विभाग और सरकारों की अनदेखी के चलते रेवाड़ी के कुतुबपुर में बनी हवेली खंडहर में बदल गई है. ठीक उसी तरह से जैसे इतिहास में 22 लड़ाईयां जीतने वाले हेमू का जिक्र है. हमारे इतिहास में भी हेमू के बारे में उनकी जिंदगी की कहानियों के खंडहर को ही बताया गया है.
हेमचंद्र विक्रमादित्य (हेमू)
- हेमू का जन्म 1501 ई. में राजस्थान के अलवर जिले के माछेरी गांव में हुआ था.
- 1515 ई. में हेमू रेवाड़ी के कुतुबपुर में अपनी बहन के यहां आकर रहने लगा.
- अपनी बहन के यहां रहकर ही हेमू ने शिक्षा प्राप्त की.
- कुछ लोगों का मानना है कि शुरुआत में हेमू उत्तर भारत में नमक की सप्लाई करता था, लेकिन यह सही नहीं है.
- हेमू शोरा और तोपों का व्यापारी था, जिन्हें वह शेरशाह सूरी को सप्लाई करता था.
- शोरे का प्रयोग तोप के गोलों में किया जाता था.
- हेमू शोरे का व्यापार पुर्तगाल से करता था.
- भारत में सबसे पहले तोपों के इस्तेमाल का श्रेय हेमू को ही दिया जाता है.
- शोरे की बदौलत ही पूरे उत्तर भारत में हेमू ने अपने आपको स्थापित किया.
1540 ई. में शेरशाह सूरी की मृत्यु के बाद इस्लाम शाह गद्दी पर बैठा, उसने हेमू को अपना एडवाइजर बनाया. इस्लाम शाह के शासन काल में हेमू ने अलग-अलग तरह की जिम्मेदारियां निभाई. जिनमें आंतरिक प्रशासन से लेकर सेना से जुड़े काम-काज तक शामिल रहे. हेमू ने इस्लाम शाह के लिए राजदूत का काम भी किया था. वह इस्लाम शाह का दूत बनकर काबूल में हुमायूं से बातचीत करने भी गया थे.