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अजंता जैसी कलाकारी के लिए मशहूर थी इमारत, आज धूल में मिलती जा रही ये धरोहर

नायाब कलाकारियों के लिए मशहूर सेठ चुहीमल का तालाब आज अनदेखी के चलते खोखला हो चुका है. आबादी बसने के बाद गंदगी यहां अटी रहती है. कभी पर्यटकों की पहली पसंद रहने वाला ये तालाब आज खंडहर में तब्दील हो चुका है.

negligence of seth chuhimal talaab of nuh
नूंह में सेठ चुहीमल का तालाब

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Published : Dec 14, 2019, 11:22 PM IST

मेवात:नूंह में एक से बढ़ कर एक नायाब पर्यटन स्थल है. दर्शनीय और ऐतिहासिक इमारतों की यहां भरमार है. इन्हीं कुछ एतिहासिक स्थलों में से एक है 400 साल पुराना चुहिमल का तालाब. नूंह स्तिथ सेठ चुहिमल का तालाब अपनी खूबसूरती के साथ-साथ गुबंद में की गई चित्रकारी के लिए खासी पहचान रखता है, लेकिन आज इस तालाब की हालत खस्ता है.

तालाब के किनारे बने इमारत के गुबंद में जो चित्रकारी की गई है. ऐसी चित्रकारी अजंता-एलोरा की गुफाओं में देखने को मिलती हैं. तालाब की खासियत यह है कि आज तक इसका पानी नहीं सूखा है. हालांकि आज यहां आबादी बस जाने की वजह से अब तालाब में गन्दगी बढ़ गई है.

अजंता जैसी कलाकारी के मशहूर थी इमारत, देखिए वीडियो

नाम बदला मगर काम नहीं हुए!
मेवात जिला 2005 में बना, लेकिन आज तक भी सरकार किसी ऐतिहासिक स्थल को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित नहीं कर पाई. लोगों का मानना है कि अगर सेठ चुहिमल तालाब को सरकार पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करें तो मेवात के लोगों की सुविधा के साथ-साथ सरकार को राजस्व की बढ़ोत्तरी होती. इसके साथ इतिहास को भी जिंदा रखा जा सकेगा.

'गुंबद से तालाब तक थी एक गुफा'
गुबंद के अंदर जो विशाल गुफा है, वह सैकड़ों मीटर दूर सेठ चुहिमल के महल तक जाती है. सेठ चुहिमल आज से सैकड़ों साल पहले इस इलाके के काफी अमीर व्यक्ति थे। तालाब और गुबंद के साथ-साथ गुफा को आरामगाह के लिए बनाया था. तालाब में स्नान करने के लिए लोग गुफा से जाते थे और स्नान के बाद गुबंद की छत पर धूप सेंकते थे.

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इतनी अनदेखी क्यों?
समय तेजी से बदला, लेकिन तालाब की सूरत सरकार बदलना भूल गई. मेवात जिले में ऐतिहासिक इमारतों की कमी नहीं है, लेकिन जिला मुख्यालय नूंह में होने की वजह से इसे आसानी से पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है. पुरातत्व विभाग ने मेवात की किसी भी ऐतिहासिक ईमारत को गंभीरता से नहीं लिया. अगर ऐसी इमारतों को यूंही अनदेखा किया जाता रहा तो ऐतिहासिक इमारतों का वजूद समाप्त हो जायेगा और आने वाली पीढ़ियां इन इमारतों को महज किताबों में ही देख सकेंगे.

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