नूंह: नीति आयोग की सूची में प्रदेश का नूंह जिला भले ही शामिल हो गया हो. कागजों में शिक्षा-चिकित्सा में सुधार के बड़े-बड़े दावे किये जा रहे हों, लेकिन नूंह के सरकारी स्कूलों की हालत अच्छी नहीं है. ना वहां बच्चों के लिए बेहतर आधारभूत सुविधाएं हैं ना ही बच्चों को पढ़ाने के लिए जरूरी शिक्षक हैं. ऐसा हम नहीं कह रहे, बल्कि जमीनी हकीकत कह रही है.
कागजों में सुधार हुआ, तस्वीरें वही हैं!
जिले में भारी संख्या में ऐसे स्कूल हैं, जहां बच्चे पढ़ने आते तो हैं मगर उन्हें पढ़ाने वाला अध्यापक नहीं है. नतीजतन यहां स्कूल तो चलता है मगर पढ़ाई नहीं होती. ऐसे हालात के बावजूद नीति आयोग के आंकड़ों में नूंह जिला 115 नंबर से कैसे टॉप 33 जिलों की सूची तक पहुंच गया, ये वाकई ऐसी बात है जैसे सूखे पेड़ पर आम उग आए हों, चलिए कागजों में ही सही परिणाम में सुधार होता है अच्छा लगता है, मगर लोग हैरान हैं.
स्कूलों की स्थिति डांवांडोल!
बोर्ड की परीक्षाओं में अब ज्यादा समय नहीं है. ऐसे में शिक्षा के क्षेत्र में फिसड्डी नूंह जिले के वार्षिक परीक्षा परिणामों में बेहतरी की आस लगाना किसी बेईमानी से कम नहीं है. हैरानी की बात तो ये है कि बहुत से स्कूलों ने तो सालभर मुख्याध्यापक तक नहीं किये.
ये आंकड़ें हैरान करते हैं!
आपको बता दें कि नूंह जिले में प्रिंसिपल के 77 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से 58 प्रिंसिपल कार्यरत हैं. 19 राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में प्रिंसिपल तक नहीं हैं. हेडमास्टर के 24 पद स्वीकृत हैं, जो सभी के सभी रिक्त पड़े हुए हैं.
ईएसएचएम के 352 पद स्वीकृत हैं जिनमें 212 पद पर नियुक्ति है, लेकिन 140 पद खाली पड़े हुए हैं. ये पद मिडिल स्कूलों में होते हैं. लेक्चरर के 1273 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से 616 पदों पर नियुक्ति की हुई है. 657 पद अभी भी लेक्चरर के खाली पड़े हुए हैं.