कुरुक्षेत्रः किर्मच रोड पर स्थित पहली पातशाही जगत गुरु श्री गुरु नानक देव जी महाराज के गुरुद्वारा साहिब के दर्शन करने के लिए देश-विदेश से लोग पहुंचते हैं. इस गुरुद्वारा साहिब की देखरेख और संगत की सेवा करने का काम शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी अमृतसर द्वारा किया जाता है.
1558 वैशाख की अमावस्या को पहुंचे गुरु नानक
धर्मनगरी कुरुक्षेत्र एक ऐसा पवित्र स्थल है जो सिख पंथ के लिए भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. इस पावन धरा पर सिखों के 8 गुरु साहिबान ने अपने चरण रखकर इस भूमि को इतिहास के सुनहरे पन्नों में शुमार कर दिया था. इसी भूमि पर सूर्य ग्रहण के समय पहली पातशाही गुरु नानक देव जी महाराज सन 1558 वैशाख की अमावस्या पर पहुंचे थे.
कुरुक्षेत्र में गुरुनानक देव जी ने अमावस्या के दिन जालई थी आग क्या है मान्यता
गुरुद्वारे के ग्रंथी ने बताया कि 1558 में सिखों के प्रथम गुरु गुरु नानक देव जी कुरुक्षेत्र के ब्रह्मसरोवर स्थित इस जगह पर पहुंचे थे. माना जाता है कि पहले हिंदू धर्म की प्रथा के अनुसार सूर्य ग्रहण के दिन आग नहीं जलाई जाती थी और गुरु नानक देव जी ने यहां ब्रह्मसरोवर के किनारे आग आग जलाकर राजा के द्वारा भेंट में दिया गया मांस भी यहां पकाया था और लोगों को लंगर के रूप में बांटा था. जिसके चलते गुरु नानक देव की यहां रहने वाले एक पंडित के साथ बहस भी हो गई थी.
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आज भी मौजूद है शिलालेख
ग्रंथी के मुताबिक पंडित और गुरु नानक देव जी के बीच काफी बहस के बाद पंडित को गुरु नानक देव की बातों का प्रभाव पड़ा और जिसके बाद पंडित ने भी सिख धर्म को अपना लिया था गुरुद्वारे के बाहर आज भी एक शिलालेख लिखा हुआ है जिस पर गुरु नानक देव जी के पहुंचने की पूरी कहानी लिखी हुई है.