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लाडवा का पवित्र मंजी साहिब गुरुद्वारा: यहां मौजूद चारपाई जिस पर श्री गुरु तेग बहादुर ने किया था आराम

कुरुक्षेत्र के लाड़वा में पवित्र मंजी साहिब गुरुद्वारा है. इस गुरुद्वारे में सिखों के नौंवे गुरु श्री तेग बहादुर ने सन 1635 में आनंदपुर से हरिद्वार जाते समय आराम किया था. यहां पर गुरुजी से जुड़ी कई यादगार चीजे हैं.

ladwa manji gurudwara
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Published : Jan 18, 2020, 7:02 AM IST

कुरुक्षेत्र: इतिहास के पन्नों में ऐसी बहुत सी अनसुनी कहानियां और किस्से हैं, जिनके बारे में बहुत से लोगों को कुछ भी पता नहीं है. ऐसी ही कहानी और किस्सों के बारे में लोगों को बताने के लिए ईटीवी भारत की टीम कुरुक्षेत्र के लाडवा पहुंची. वही लाडवा जहां पर पवित्र मंजी साहिब गुरुद्वारा है. जहां सिखों के नौंवे गुरु श्री तेग बहादुर ने सन 1635 में आनंदपुर से हरिद्वार जाते समय आराम किया था.

सेवादार ने नहीं बनवाया था कुंआ

गुरु श्री तेगबहादुर ने जरूरत मंद लोगों के लिए यहां के एक जमींदार को कुछ सोने की मुद्राएं दी. गुरु तेगबहादुर ने सेवादार को ये मुद्राएं पीने के पानी का कुंआ बनवाने के लिए दी थी. उसके बाद श्री गुरु तेग बहादुर हरिद्वार चले गए. कुछ समय बाद श्री तेग बहादुर जब हरिद्वार से आनंदपुर वापिस जा रहे थे तो देखा कि उस सेवादार ने वहां कुंए का निर्माण नहीं करवाया था जिसके चलते गुरु नाराज हो गए.

लाड़वा का पवित्र मंजी गुरुद्वारा, देखें वीडियो

गुरुजी ने बनवाया कुंआ

इससे श्री गुरु तेग बहादुर नाराज हो गए. जब लोगों ने गुरु तेग बहादुर से माफी मांगी तो वो मान गए और लोगों को माफ कर दिया. लोगों ने गुरुजी का जोरदार स्वागत किया. गुरुजी वहीं रुके. फिर श्री गुरु तेगबहादुर जी ने स्वयं ही वहां कुंआ और बाग बनवाया. हालांकि अब यहां पर बाग नहीं है, लेकिन आज भी बाग की 30 एकड़ जमीन यहां पर है.

गुरुद्वारे में मौजूद चारपाई

यहां उस समय की एक चारपाई है. जिस पर गुरुजी ने विश्राम किया था. वो चारपाई आज भी यहां गुरुद्वारे में मौजूद है. इसी कारण से इस गुरुद्वारे का नाम मंजी साहिब पड़ा. गुरु तेग बहादुर ने जो कुंआ बनवाया था वो आज भी कुरुक्षेत्र के गांव बनी में मौजूद है. यहां के लोगों का मानना है जो यहां पूरी श्रद्धा भाव से शीश नमन करने के लिए आता है. उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है.

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साल 1675 में क्रूर मुगल शासक औरंगज़ेब ने गुरु तेग बहादुर जी का सिर कलम कर दिया था. गुरु तेग बहादुर जी ने 111 शबद और 15 रागों की रचना की थी. उनकी शिक्षाओं और रचनाओं को गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल किया गया है.

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