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अद्भुद कलाकारी और शानदार इंजीनियरिंग को पेश करता है 18वीं सदी में बना ये नाभा हाउस

नाभा हाउस के बारे में बताया जाता है कि इस महल नुमा इमारत का निर्माण नाभा के तत्कालीन राजा हीरा सिंह ने 18वीं सदी में करवाया था. नाभा हाउस कुरुक्षेत्र के संत सरोवर के ठीक सामने बनी है. नाभा का शाही परिवार कुरुक्षेत्र में आयोजित धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेने के लिए जब यहां आता था तो वह इसी इमारत में निवास करता था.

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18वीं सदी में बने नाभा हाउस का जानिए इतिहास

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Published : Feb 22, 2020, 8:37 PM IST

कुरुक्षेत्र:हरियाणा के इस नगर को धर्म नगरी कहा जाता है, लेकिन बहुत कम लोग ही जानते हैं कि यहां पर कई ऐसी ऐतिहासिक इमारतें हैं जिसको प्राचीन समय में राजा-महाराजाओं ने निर्माण कराया था. उन ऐतिहासिक इमारतों में एक नाम है नाभा हाउस.

राजा ने इसलिए बनवाया था महल

नाभा हाउस के बारे में बताया जाता है कि इस महल नुमा इमारत का निर्माण नाभा के तत्कालीन राजा हीरा सिंह ने 18वीं सदी में करवाया था. नाभा हाउस कुरुक्षेत्र के संत सरोवर के ठीक सामने बनी है. नाभा का शाही परिवार कुरुक्षेत्र में आयोजित धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेने के लिए जब यहां आता था तो वह इसी इमारत में निवास करता था.

18वीं सदी में बने नाभा हाउस का जानिए इतिहास

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लाखोरी ईंटों से बनी यह इमारत अद्वितीय है

यह इमारत प्राचीन काल की लखोरी ईंटों से बनी है. सूर्यग्रहण जैसे अवसरों पर नाभा के राजा अपने लाव लश्कर के साथ शाही स्नान करने जब कुरुक्षेत्र आते थे. तब राजा अपने द्वारा बनवाए गए इस इमारत में ठहरते थे. इस इमारत के प्रवेश द्वार के अगले हिस्से पर टोडेदार मेहराब है और मेहराब के दोनों तरफ दो स्तंभों पर भगवान गणेश की प्रतिमाएं लगी हुई हैं. दोनों स्तंभ कमल आकार के आधार पर टिके हैं और उपर कमल पुष्प मंडीत है. वहीं इस इमारत की छत पर भगवान ब्रह्मा की 15 फुट ऊंची मंदिर बना हुआ है.

पुरातत्व विभाग कर रहा इसकी देखभाल

संत सरोवर के किनारे बने इस नाभा हाउस का स्वरूप अनजाने में सरकारी विभागों ने बिगाड़ दिया था. सरकार ने इस नाभा हाउस में कॉलेज खोल दिया. कॉलेज प्रशासन के मनमानी रवैये ने इस ऐतिहासिक इमारत का नक्सा ही बदल दिया. कॉलेज प्रशासन ने इस इमारत में गोदाम तक बनवा डाले. यह भवन करीब दस सालों तक कॉलेज प्रबंधन की मनमानी का शिकार होता रहा. बाद में इसकी हालत बिगड़ते देख सरकार ने सन 2005 में इसके देखरेख की जिम्मेदारी पुरातत्व विभाग के अधीन दे दी. तब से यह यह इमारत की देखरेख पुरातत्व विभाग ही करती है. करीब डेढ़ करोड़ खर्च कर पुरातत्व विभाग ने इस इमारत को पुन: इसका पुराना रूप दे दिया है.

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