हरियाणा

haryana

ETV Bharat / state

Yashoda Jayanti 2023: क्यों मनाई जाती है यशोदा जयंती, क्या है इसका महत्व, जानिए पूजा विधि - karnal special story

सनातन धर्म में हर तिथि की काफी मान्यता होती है. रविवार को यशोदा जयंती है. हिंदू धर्म में यशोदा जयंती को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है. इस दिन की शुरुआत व समापन समय कब होगा, आइए जानते हैं.

Importance of Yashoda Jayanti
यशोदा जयंती

By

Published : Feb 12, 2023, 7:09 AM IST

करनाल: फाल्गुन के महीने में कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को यशोदा जयंती का उत्सव मनाया जाता है. यह तिथि 12 फरवरी 2023 के दिन यानि आज है. यशोदा जयंती का पर्व भगवान श्रीकृष्ण की मां यशोदा के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है. सभी को पता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने माता देवकी के गर्भ से जन्म लिया था पर इनका पालन-पोषण माता यशोदा ने किया था. हिंदू शास्त्रों में बताया गया है कि अगर कोई स्त्री इस दिन पूरी श्रद्धा के साथ माता यशोदा और भगवान कृष्ण का पूजन करती है तो उसे भगवान कृष्ण के बाल रूप के दर्शन प्राप्त होते हैं.

यशोदा जयंती का समय:षष्ठी तिथि शुरुआत समय 11 फरवरी , रात 09:07 बजे से षष्ठी तिथि समापन समय 12 फरवरी, रात 09:45 बजे तक होगा.

यशोदा की जन्म कथा:पौराणिक कथाओं के अनुसार ब्रज के गोप सुमुख और उसकी पत्नी के घर भगवान ब्रह्मा की कृपा से एक कन्या का जन्म हुआ था. इस कन्या का नाम यशोदा रखा गया था. शास्त्रों के अनुसार यशोदा का विवाह ब्रज के राजा नंद के साथ तय किया गया था. ऐसा माना जाता है कि पिछले जन्म में नंद द्रोण के रूप में जन्म लिए थे.

यशोदा जयंती का महत्व:यशोदा जयंती पर माताएं उपवास रखकर संतान के सुख के लिए मंगलकामनाएं करती हैं. मान्यता है कि इस दिन संतान सुख से वंचित लोग अगर माता यशोदा का व्रत रखकर विधिपूर्वक पूजा करते हैं, उन्हें भी संतान सुख प्राप्त हो जाता है. कहा जाता है कि माता यशोदा नाम ही यश और हर्ष देने वाला है, जिसके चलते इस व्रत को रखने वालों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और उनके जीवन की कठिनाइयों में कमी आती है. संतान संबंधी जितनी भी समस्याएं है सभी दूर हो जाती है.

यह भी पढ़ें-12 फरवरी का पंचांग: आज का चन्द्रबल और ताराबल किन राशियों पर है, देखें आज का पंचांग

यशोदा जयंती का महत्व:यशोदा जयंती का फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन मनाया जाता है. इस दिन माता यशोदा की गोद में विराजमान श्रीकृष्ण के बाल रूप और मां यशोदा की पूजा की जाती है. शास्त्रों में बताया गया है कि इस दिन माता यशोदा और श्रीकृष्ण की पूजा करने से सभी प्रकार की संतान संबंधी परेशानियां दूर हो जाती हैं. जो भी इंसान इस दिन मां यशोदा और श्रीकृष्ण की पूजा करता है उसकी सभी मनोकामना पूर्ण हो जाती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अगर कोई स्त्री सच्चे मन और पूरी श्रद्धा के साथ यशोदा जयंती के दिन भगवान श्रीकृष्ण और यशोदा जी की करती है तो उसे भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप के दर्शन प्राप्त होते हैं और उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है.

यशोदा जयंती की पूजा विधि:यशोदा जयंती के दिन पूजा करने के लिए सुबह प्रात: उठकर दैनिक कार्य से निवृत होकर किसी पवित्र नदी में स्नान करें. अगर आपके घर के आस-पास कोई नदी नहीं है तो आप अपने नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर भी स्नान कर सकते हैं. स्नान करने के पश्चात् स्वच्छ और शुद्ध वस्त्र धारण करें. इसके पश्चात कलश को स्थापित करें. कलश को स्थापित करने के पश्चात् यशोदा जी की गोद में विराजमान लड्डू गोपाल की तस्वीर या मूर्ति की स्थापना करें. अब मां यशोदा को लाल रंग की चुनरी चढ़ाएं.

अब माता यशोदा को कुमकुम, फल,फूल, मीठा रोठ, पंजीरी, माखन आदि सभी चीजें चढ़ाएं. इन सभी चीजों को चढ़ाने के पश्चात् माता यशोदा के समक्ष धूप व दीप जलाएं और यशोदा माता और भगवान श्रीकृष्ण की विधि विधान के साथ पूजा करें. अब श्रद्धा पूर्वक यशोदा जयंती की कथा सुनें और माता यशोदा और लड्डू गोपाल की आरती करें. आरती करने के पश्चात् माता यशोदा को भगवान् कृष्ण को मीठे रोठ का भोग लगाएं और भगवान श्रीकृष्ण को पंजीरी और माखन का भोग अर्पित करें. पूजा करने के पश्चात् अपने दोनों हाथ जोड़कर माता यशोदा और लड्डू गोपाल से पूजा के दौरान हुई किसी भी गलती के लिए क्षमा याचना करें.

माता यशोदा और लड्डू गोपाल से क्षमा याचना करने के पश्चात् स्वयं पंजीरी का प्रसाद ग्रहण करें और परिवार के सभी लोगों को प्रसाद वितरित करें. पूजा संपन्न करने के पश्चात् गाय को भोजन कराएं, क्योंकि शास्त्रों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण को गाय बहुत प्रिय है. गाय को भोजन करवाने से भगवान् कृष्ण प्रसन्न होते हैं और आपकी सभी मनोकामनाओं को पूरा करते हैं.

यशोदा जयंती की कथा: पौराणिक कथा के अनुसार माता यशोदा ने भगवान विष्णु की कठोर तपस्या की थी. जिससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान मांगने के लिए कहा. तब माता यशोदा ने कहा कि मेरी इच्छा तब ही पूर्ण होगी जब आप मुझे पुत्र रूप में मेरे घर आएंगे. इसके बाद भगवान विष्णु ने कहा कि आने वाले समय में वासुदेव और देवकी मां के घर में जन्म लूंगा. लेकिन मेरा लालन पालन आप ही करेंगी. समय बीतता गया और ऐसा ही हुआ. भगवान श्रीकृष्ण ने देवकी और वासुदेव के यहां आठवीं संतान के रूप में पुत्र का जन्म लिया और इसके बाद वासुदेव उन्हें नंद और यशोदा के यहां छोड़ आए. जिससे उन्हें कंस के क्रोध से बचाया जा सके और उनका लालन पालन अच्छी प्रकार से हो सके.

इसके बाद माता यशोदा ने कृष्णजी का लालन पालन किया. जिसकी तुलना भी नहीं की जा सकती है. माता यशोदा के विषय में श्रीमद्भागवत में कहा गया है- 'मुक्तिदाता भगवान से जो कृपाप्रसाद नन्दरानी यशोदा को मिला, वैसा न ब्रह्माजी को, न शिवजी को और न ही कभी भगवान विष्णु की अर्धांगिनी लक्ष्मीजी को ही प्राप्त हुआ.

ABOUT THE AUTHOR

...view details