करनाल: संस्कृति और परंपराओं पर आधुनिक जमाने की चकाचौंध भारी पड़ रही है. भारतीय संस्कृति से जुड़े पारंपरिक त्योहारों पर यहां के कारीगरों द्वारा निर्मित सामान को तरजीह दी जाती है, लेकिन अब दिवाली पर मिट्टी के दीये की जगह बिजली के बल्ब लड़ियां चमकते हैं.
संस्कृति पर भारी पड़ी आधुनिक जमाने की चकाचौंध !
दीये को दिवाली के प्रतीक के रूप में माना जाता है. दीये के बिना त्योहार नहीं मनाया जा सकता, लेकिन आज इलेक्ट्रोनिक सामान को दीये की शक्ल दे दिए जाने से मिट्टी के दीयों की मांग कम हुई है. इससे कुम्हार का पारंपरिक व्यवसाय तो प्रभावित हुआ ही है और साथ ही उसकी दीपावली भी फीकी हुई है.
दीयों की बिक्री नहीं होने से मायूस हुए कुम्हार
दिवाली पर मिट्टी के दीये बेचकर कुम्हार के घर की दिवाली अच्छी होती है. जिसका इंतजार भी उसे साल भर रहता है, लेकिन दिन प्रतिदिन बढ़ती आधुनिकता के जमाने की चकाचौंध अब कुम्हार पर और उसके व्यवसाय पर भारी पड़ रही है.