फरीदाबाद:35वें सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय मेले (Surajkund International Crafts Mela 2022) में जहां एक तरफ शिल्पकार व कलाकार अपनी कलाकृतियों से दर्शकों का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं. वहीं उत्तराखंड का एक किसान उत्पादन संगठन स्वच्छ भारत के सपने को साकार करने में लगा है. मेले में वह प्लास्टिक को हटाकर रिंगाल (बोना बांस) से बने उत्पादों को लेकर आए हैं. उनका मकसद है कि धरती को प्लास्टिक मुक्त बनाया जाए. धरती पर आज सबसे बड़ी समस्या प्लास्टिक का निपटारा है.
प्लास्टिक और उससे बने सामान को पूरी तरह से खत्म होने में सालों लग जाते हैं. जिसके चलते आज पृथ्वी पर प्लास्टिक भारी मात्रा में कचरे के रूप में इकट्ठा हो रहा है. ऐसे में सबके सामने सबसे बड़ी समस्या यही है कि किस तरह से धरती को प्लास्टिक मुक्त बनाया जाए और पर्यावरण को बचाया जाए. क्योंकि जितना ज्यादा प्लास्टिक प्रयोग में आ रहा है उतना ही पर्यावरण को नुकसान भी हो रहा है. प्लास्टिक से बना सामान अगर जलता भी है तो भी लोगों को और पर्यावरण को नुकसान हो रहा है.
उत्तराखंड का ये संगठन स्वच्छ भारत के सपने को कर रहा साकार, प्लास्टिक की जगह रिंगाल से बने उत्पाद लाए ऐसे में उत्तराखंड का एक संगठन धरती से प्लास्टिक को खत्म करने के लिए आगे बढ़ रहा है. उत्तराखंड का एक किसान उत्पादन संगठन राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक नाबार्ड की मदद से उत्तराखंड के पिथौरागढ़ की 320 महिलाओं को उत्तराखंड किसान सहकारिता संगठन उत्तराखंड की बहु उपयोगी वनस्पति रिंगाल (बोना बांस) से उत्पाद बनाकर लोगों को प्लास्टिक का विकल्प सुझा रहे हैं. संगठन द्वारा रिंगाल से तैयार उत्पादों में छोटा गुलदस्ता, मंदिर स्टैंड, बाउल स्टैंड, लैंपस्टैंड, घोंसले, टोकरी, पेन स्टैंड, पूजा की छोटी व बड़ी टोकरी, हथकंदी सहित अन्य उत्पाद शामिल हैं.
रिंगाल (बोना बांस) से बने उत्पाद स्टॉल के संचालक मोहन राम ने बताया कि इन उत्पादों को बनाने में जिस रिंगाल का प्रयोग किया जाता है वह हिमालय के बर्फीले क्षेत्रों में पाया जाता है. इससे बने उत्पाद सस्ते व टिकाऊ होने के साथ-साथ पर्यावरण के अनुकूल भी हैं. वह इस मेले में दूसरी बार भाग ले रहे हैं. दुकान पर घर में प्रयोग किए जाने वाली 20 प्रकार की वस्तुएं उपलब्ध हैं. वस्तुओं की कीमत ₹100 से लेकर ₹2000 तक की हैं. उन्होंने कहा कि आज प्लास्टिक सबसे बड़ा खतरा है. इसी बढ़ते हुए खतरे को देखकर उन्होंने इन उत्पादों को बनाना शुरू किया.
रिंगाल (बोना बांस) से बने उत्पाद ये भी पढ़ें-Surajkund Mela 2022: छत्तीसगढ़ के शिल्पकार ने कन्हार मिट्टी और भूसे से तैयार की डाई से बनाई कलाकृतियां
वर्ष 2015 में एनजीओ के साथ मिलकर उन्होंने इन उत्पादों को बनाना शुरू किया और उनका मकसद यही है कि प्लास्टिक को जल्द से जल्द खत्म किया जाए ताकि जो नुकसान हमारे पर्यावरण को पहुंच रहा है उस नुकसान को रोका जा सके. साथ ही उन्होंने कहा कि रिंगाल से बनी वस्तुएं को नष्ट करने में भी किसी प्रकार का कोई खतरा नहीं है. ये वस्तुएं अगर खराब हो जाती हैं तो आसानी से नष्ट हो जाती हैं, लेकिन प्लास्टिक को नष्ट होने में सालों लग जाते हैं. इसीलिए प्लास्टिक को खत्म करने का और प्लास्टिक की जगह अगर कोई ले सकता है तो वह यही सामान है. आज के समय हम सबको जरूरत है कि प्लास्टिक का इस्तेमाल ना करें और इस प्रकार की वस्तुओं का इस्तेमाल किया जाए.
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