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हरियाणा के किसान अब इस खेती को अपनाएं, पानी भी बचेगा और मुनाफा भी बढ़ेगा

वर्टिकल फार्मिंग यानी खड़ी खेती के बारे में हरियाणा सरकार किसानों को जागरुक करेगी. सरकार का दावा है कि ये तकनीक किसानों के लिए फायदे का सौदा साबित होगी.

vertical farming haryana
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Published : Apr 12, 2021, 7:47 AM IST

Updated : Apr 12, 2021, 8:23 AM IST

चंडीगढ: हरियाणा सरकार अब वर्टिकल फार्मिंग यानी खड़ी खेती पर जोर दे रही है. सरकार का दावा है कि हरियाणा के किसानों के लिए वर्टिकल फार्मिंग लाभदायक सौदा साबित हो सकती है. सरकारी प्रवक्ता ने बताया कि सब्जियों की काश्त में तो खड़ी खेती बहुत लाभकारी है.

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सरकारी प्रवक्ता के मुताबिक उन्होंने इस पद्धति को अपनाने वाले किसानों के लिए सरकार द्वारा विशेष योजना के तहत अनुदान देने का भी प्रावधान किया है. उन्होंने बताया कि इस खेती से जहां किसान अधिक मुनाफा कमा सकते हैं, वही पानी की भी बचत की जा सकती है.

वर्टिकल फार्मिंग या खड़ी खेती क्या है?

वर्टीकल फार्मिंग (खड़ी खेती) की मुख्य बात ये है कि इसमें रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों का उपयोग नहीं किया जाता है. इस खेती की मदद से आम आदमी अपनी छतों और छोटी से जगह में भी अपने प्रयोग के हिसाब से सब्जियां पैदा कर सकेंगे. वर्टिकल फार्मिंग एक मल्टी लेवल प्रणाली है. इसके तहत कमरों में बहु-सतही ढांचा खड़ा किया जाता है, जो कमरे की ऊंचाई के बराबर भी हो सकता है. वर्टिकल ढांचे के सबसे निचले खाने में पानी से भरा टैंक रख दिया जाता है.

टैंक के ऊपरी खानों में पौधों के छोटे-छोटे गमले रखे जाते हैं. पंप के जरिए इन तक काफी कम मात्रा में पानी पहुंचाया जाता है. इस पानी में पोषक तत्व पहले ही मिला दिए जाते हैं. इससे पौधे जल्दी-जल्दी बढ़ते हैं. एलइडी बल्बों से कमरे में बनावटी प्रकाश उत्पन्न किया जाता है. इस प्रणाली में मिट्टी की जरूरत नहीं होती. इस तरह उगाई गई सब्जियां और फल खेतों की तुलना में ज्यादा पोषक और ताजे होते हैं.

इस खेती से पानी भी बचेगा और किसानों का मुनाफा भी बढ़ेगा

अगर ये खेती छत पर की जाती है तो इसके लिए तापमान को नियंत्रित करना होगा. वर्टिकल तकनीक में मिट्टी के बजाय एरोपोनिक, एक्वापोनिक या हाइड्रोपोनिक बढ़ते माध्यमों का उपयोग किया जाता है. वास्तव में वर्टिकल खेती 95 प्रतिशत कम पानी का उपयोग करती है. छतों, बालकनी और शहरों में बहुमंजिला इमारतों के कुछ हिस्सों में फसली पौधे उगाने को भी वर्टिकल कृषि के ही एक हिस्से के रूप में देखा जाता है.

पानी की बचत और मुनाफा ज्यादा

उन्होंने किसानों से अपील की है कि आगामी खरीफ सीजन में धान की बजाए लंबवत खेती करके प्रकृति के अनमोल रत्न पानी को बचाने में अपना योगदान दें. लंबवत यानी वर्टिकल खेती के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए प्रवक्ता ने बताया कि ये खेती बांस-तार के साथ अधिकतर बेल वाली सब्जियों के उत्पादन के लिए की जाती है. ये बेहद फायदेमंद तकनीक है. इस विधि से किसान बेल वाली सब्जी जैसे लौकी, तोरी, करेला, खीरा, खरबूजा, तरबूज और टमाटर का उत्पादन कर आमदनी को बढ़ा सकते हैं.

हरियाणा सरकार अब इस खेती पर देगी सब्सिडी

सरकार देगी सब्सिडी

सरकारी प्रवक्ता ने कहा कि बेल वाली सब्जी आमतौर पर खेत में सीधी लगाती हैं, जिससे एक समय के बाद इनका उत्पादन कम हो जाता है. इसके साथ-साथ कई प्रकार की बीमारी एवं कीट आदि भी लग जाते हैं. परिणाम स्वरूप उत्पादन लागत भी बढ़ जाती है. उन्होंने बताया कि उक्त विधि में किसान को एक एकड़ में 60 एमएम आकार के 560 बॉक्स, 4 गुणा 2 मीटर क्षेत्र में लगाने होते हैं, जिसमें बांस की ऊंचाई लगभग 8 फीट होनी चाहिए. सभी बांसों को 3 एमएम के तीन तारों की लेयर से बांधना होता है.

इसके साथ-साथ जूट अथवा प्लास्टिक की सुतली फसल की स्पोर्ट के लिए लगाई जाती है. इस विधि पर किसान का लगभग 60 हजार रुपए का खर्च आता है, जिस पर 31 हजार 200 रुपये प्रति एकड़ किसान को अनुदान प्रदान किया जाता है. बांस-तार के अतिरिक्त आयरन स्टाकिंग विधि जिसमें बांस-तार की जगह लोहे की एंगल लगाकर ढांचा बनाया जाता है और इस पर बेल वाली सब्जियां लगाई जाती हैं.

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इस विधि के अपनाने पर प्रति एकड़ लगभग 1 लाख 42 हजार रुपये खर्च आता है, जिस पर बागवानी विभाग 70 हजार 500 रुपए प्रति एकड़ का अनुदान किसानों को देता है. अकेले जिला रोहतक में बेल वाली सब्जियों की काश्त बांस-तार विधि पर काफी प्रचलित हो चुकी है. इस जिले में लगभग 250 हेक्टेयर क्षेत्र में इस विधि पर किसान बेल वाली सब्जियों का उत्पादन कर रहे हैं.

Last Updated : Apr 12, 2021, 8:23 AM IST

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