चंडीगढ़: बचपन इंसान के जीवन के सबसे यादगार और अनमोल लम्हा होता है. बचपन में किसी तरह का कोई दबाव नहीं रहता इसीलिए इस अवस्था को सबसे अच्छे और सुनहरे लम्हों की तरह याद किया जाता है. मगर बचपन की अवस्था के साथ ही स्कूल में कुछ सीखने की ललक के साथ शुरू होने वाली परीक्षा की पाठशाला का बोझ विद्यार्थियों पर लगातार बढ़ता जाता है.
जैसे-जैसे कक्षाएं बदलती हैं परीक्षाओं का भी दबाव बढ़ने लगता है. स्कूल के शानदार दिनों में जिंदगी के अहम पाठ पढ़ाने वाली पाठशाला में परीक्षाओं का दबाव इस कदर बढ़ने लगा है कि परिक्षाओं की पाठशाला में कई तरह की अपेक्षाओं और खुद बेहतर करने की होड़ भी बोझ डालती है. परीक्षाओं की पाठशाला के अपने विशेष कार्यक्रम के दौरान हमने जब स्कूल में पहुंचकर बच्चों से परीक्षाओं के चलते प्रेशर के बारे में जाना तो वाकई बच्चों ने बेबाकी से अपनी स्थिति समझाने की कोशिश की.
परीक्षा की घड़ी में बच्चों पर बढ़ने लगता है दबाव, जानें एक्सपर्ट्स की क्या है राय छोटे कंधों पर बड़े-बड़े सपनों का बोझ!
पाठशाला में परीक्षा का यह दबाव इस कदर हावी है कि परिवार से लेकर स्कूल तक में परीक्षाओं में आगे जाने की होड़ के साथ कैरियर बनाने की होड़ अभी से बच्चे अपने कंधों पर लेकर काफी दबाव महसूस करने लगे हैं. उच्च शिक्षा को कामयाबी की गारन्टी माने जाने लगा है तो शिक्षा के मंदिर कहे जाने वाले स्कूलों में लगने वाली पाठशाला में परीक्षाओं की होड़ अपेक्षाओं और उम्मीदों के साथ काफी कठिनाई भरी होने लगी है.
'डिप्रेशन में जाने की नौबत आ जाती है'
इतना ही नहीं बच्चे जिन पर अक्सर परीक्षाओं का बहुत सा दबाव रहता है. वह भी इस परीक्षा को लेकर डिप्रेशन में आ सकते हैं. यह सुनना भी काफी हैरानी वाली बात रही. फिलहाल परीक्षाओं का ऐसा क्या दबाव रहता है. जिसके चलते बच्चे डिप्रेशन तक में चले जाते हैं. कक्षा दसवीं के इन छात्रों ने बताया कि आम परीक्षाओं का दबाव तो रहता ही है. साथ ही कक्षा दसवीं में बोर्ड की परीक्षा होने का एक अलग तरह का दबाव रहता है.
परिवार के लोगों की तरफ से बार-बार याद करवाया जाता है कि परीक्षा नजदीक आ गई है ऐसे में परिवार के लोगों का परीक्षा को लेकर याद करवाना भी बच्चों को एक जंग में जाने की ही तरह प्रेरित करता है. वही बच्चों को परिवार के लोगों की बेहतर करने की उम्मीद है और शिक्षकों को बेहतर परिणाम की अपेक्षाएं भी याद रहती हैं.
अच्छे अंकों की होड़ में खराब हो जाती है सेहत!
इसके इलावा अपने जीवन में कुछ बनने की और दूसरे से पीछे न रह जाने की अपनी भी होड़ बच्चे लगाए रहते जिसमें दूसरो से अच्छे अंक लाने का भी लक्ष्य दिमाग मे रहता है. बच्चों को बार-बार बताया जाता है कि कक्षा 10 वीं के परिणाम से ही उनका बेस बनने वाला है. जिसके चलते उन्हें लगातार मेहनत करते रहना होगा.
वहीं परीक्षाओं से पहले कई विषय जैसे कि साइंस, गणित, इतिहास भी बच्चों को डराते नजर आते हैं. किसी को जहां साइंस का सब्जेक्ट चुनौती जैसा लगता है. वहीं किसी को गणित तो किसी को इतिहास में हुई लड़ाइयों के सन (वर्षों) को याद रखने ने बेहद परेशानी पेश आती है.
हालांकि बच्चे यह मानते हैं कि जैसे-जैसे कक्षाएं आगे बढ़ती हैं सिलेबस बढ़ता है और चुनौतियां भी बढ़ रही हैं. जबकि कुछ छात्र तो मानते हैं कि हर कक्षा में उम्र के हिसाब से सिलेबस काफी मुश्किल नजर आता है और यह उलझन कक्षा पहली से लेकर हमेशा बनी रहती है, यानी हर साल उनकी उम्र के हिसाब से उनके लिए सिलेबस पहाड़ जैसा लगता है.
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बिना दबाव के परीक्षा की तैयारी करें- डॉ. बलराज थापर
इसको लेकर जब हमने एजुकेशन एक्सपर्ट डॉ. बलराज थापर से इस बारे में जानना चाहा तो उन्होंने कहा कि अक्सर अभिभावकों की तरफ से बच्चों पर रहने वाला दबाव काफी ज्यादा हो जाता है, इसलिए अभिभावकों को चाहिए कि बच्चों को किसी भी तरह की रोक-टोक ना करें और उन्हें खुला छोड़ दें, बच्चे जो करना चाहते हैं उन्हें करने दिया जाए. वहीं उन्होंने कहा कि दबाव या तनाव में रहकर किसी भी तरह का फायदा नहीं होता, इसीलिए विद्यार्थियों को यह बात समझनी होगी कि बिना किसी दबाव के वे परीक्षा की तैयारी करें. वहीं उन्होंने शिक्षकों की तरफ से रहने वाले दबाव को लेकर कहा कि अक्सर शिक्षकों की तरफ से दबाव रहता है मगर वह पूरी कक्षा को लेकर रहता है किसी एक छात्र को लेकर नहीं.
गौरतलब है कि अक्सर परीक्षाओं की पाठशाला में छात्रों से दबाव कम करने और उन्हें बेहतर करते रहने के लिए अभिभावक अहम कड़ी बन सकते है जो कि बेहतर करने का दबाव न डालते हुए केवल उनकी मदद कर सकते है जबकि बेहतर परिणाम के लिए शिक्षक भी आगे आकर बच्चे को आने वाली परेशानियों को सुलझाकर काफी अहम कड़ी अक्सर बनते भी है और बनने की जरूरत भी रहती है.
डॉ. बलराज का कहना है कि फेल या पास होने का दबाव कम करना बेहद जरूरी है. बच्चों पर बेहतर करने का दबाव हर पाठशाला से दूसरी पाठशाला में जाने, जीवन में बेहतर करने का पैमाना परीक्षा को माना जाने लगा है, जिसके चलते ही परीक्षाओं की पाठशालाओं में बच्चों पर दबाव भी रहता है.