चंडीगढ़: चंडीगढ़ पीजीआई के विशेषज्ञों ने कालाजार रोग (research on black fever in chandigarh pgi) को फैलने से रोकने के लिए नई वैक्सीन तैयार की है. जो मर्ज बढ़ाने के बजाय रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करेगा. इस वैक्सीन की मदद से संक्रमित मरीज की जान बचाने में मदद की जाएगी. फिलहाल चंडीगढ़ पीजीआई के विशेषज्ञों ने रिसर्च को भूरे रंग के चूहे के ऊपर ही किया है. इस शोध का परिणाम सफल रहा है.
विशेषज्ञों का सफल शोध- चंडीगढ़ पीजीआई विशेषज्ञों आए दिन अनेकों तरह की रिसर्च करते हैं जिनके परिणाम लगभग सफलतापूर्वक भी रहते हैं. ऐसे में पीजीआई इम्यूनो पैथोलॉजी विभाग के प्रो. सुनील अरोड़ा ने बताया कि कालाजार जैसे संक्रमण में कई मरीजों की जान चली जाती है. जिसे ध्यान में रखते हुए लंबे समय से किए जा रहे रिसर्च (research on black fever) के जरिए मरीजों की जान बचाई जा सकती है.
काले रंग के चूहे पर सफल शोध- वहीं कालाजार जैसे संक्रमण के बचाव के लिए वैक्सीन बनाने पर व्यापक स्तर पर काम हो रहा है. इस रिसर्च को इस बार भूरे रंग के चूहे के ऊपर किया गया था. जिसका नतीजा सफल रहा है. इसमें जितने भी चूहों पर शोध किया गया था उन सभी के लिवर और अन्य अंगों पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ा.
वहीं पीजीआई में भारत के कई राज्यों से लोग कालागार (जिसे काला बुखार भी कहा जाता है) के मरीज पहुंचते हैं. जिसके अधीन रखते हुए यह रिसर्च शुरू की गई थी. लेकिन इस शोधकर्ताओं की ये मेहनत आखिर कार रंग लाई है जो इस तरह की बीमारी की रिसर्च सफल (research on black fever Success)साबित हुई है.
कैसे फैलता है कालाजार- कालाजार छोटी मक्खी के काटने से फैलता है. यह रोग को लीशमैनिया जीनस के प्रोटोजोआ परजीवी के कारण होता है. यह परजीवी मुख्य रूप से रैटिकुलोऐंडोथैलियल प्रणाली को संक्रमित करता है. यह लीवर और बोन मेरो जो एक स्टेम सेल है जो बड़ी हड्डियों के भीतर रहती हैं और तिल्ली में अधिक प्रभाव डालता है. यह रोग मादा फ्लेबोटोमिन सैंडफ्लाइज (बालू मक्खी) के काटने के कारण फैलता है.
जो लीशमैनिया डोनोवानी परजीवी का वैक्टर है. इसका आकार मच्छर का एक चौथाई होता है. कालाजार जिसे काला बुखार भी कहा जाता है वो बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसी जगहों में अधिकतर पाया जाता है. ऐसे में भारत की 16 करोड़ 54 लाख आबादी इसके प्रभाव में है.
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दो चरणों में विशेषज्ञों ने पाई सफलता - डॉ. सुनील ने बताया कि शोध के दौरान हैमस्टर्ड चूहों को वैक्सीन फॉर्म में दिया गया. कुछ दिनों की निगरानी के बाद पाया गया कि उनमें से 70 प्रतिशत चूहे तो सुरक्षित हैं लेकिन 30 प्रतिशत की स्थिति गंभीर हो गई. इसके बाद अगले चरण का कार्य शुरू किया गया. इसमें परजीवी से निकाले गए जीन की जांच की गई. इसके बाद जीन में से नकारात्मक सेल को अलग कर सकारात्मक वाले को एकत्र किया गया. फिर सकारात्मक सेल को मल्टी-एपिटोप वैक्सीन के रूप में चूहों को दिया गया. जिससे साबित हुआ के कालाजार प्रभाव चूहों पर नहीं हुआ.