चंडीगढ़:चंडीगढ़ में सुखना लेक में इकोलॉजिकल बैलेंस बनाने के लिए 7 साल बाद अभियान चलाया गया. जहां बड़ी फिशर विभाग और पंजाब यूनिवर्सिटी में जूलॉजी विभाग के टीम ने मिलकर मछलियों को पानी के बाहर निकाला गया. इस दौरान कुछ ऐसी मछलियां भी वहां पाई गई, जो उत्तर भारत के किसी भी नदी नालों में नहीं पाई जाती. चंडीगढ़ में जूलॉजी डिपार्टमेंट के विशेषज्ञ और प्रोफेसर रवनीत कौर और उनकी टीम द्वारा एक महीने तक इस अभियान से संबंधित जानकारी को एकत्र करने का काम किया गया.
पर्यावरण संतुलन बनाने पर जोर: बता दें कि सुखना लेक में हर साल सुखना लेक का पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के लिए हर तीन से चार साल के बाद सीड डाला जाता है. इसी दौरान पुरानी मछलियों को निकालने का भी काम किया जाता है. लेकिन कोरोनाकाल के कारण यह तीन साल तक नहीं किया जा सका. जिसके चलते सुखना लेक सफाई अभियान सात साल तक के लंबे समय तक पहुंच गया. वहीं, मार्च महीने में शुरू हुई इस प्रक्रिया में 221 क्वॉन्टाइल बड़ी मछलियों को निकाला गया. वहीं इस दौरान 60 किलो की एक बड़ी मछली भी पाई गई.
10 दिनों तक लेक सफाई अभियान जारी: इनमें सबसे ज्यादा मृगल मछलियां निकाली गई. वहीं फरवरी महीने के अंत से शुरू हुआ अभियान 22 मार्च तक चलाया गया. चंडीगढ़ प्रशासन के पशुपालन व मत्स्य विभाग की तरफ से पारिस्थितिकी संतुलन (इकोलॉजिकल बैलेंस) के लिए लेक से मछलियों को निकालने का काम किया था. मछलियों को निकालने का काम रात आठ बजे से सुबह छह बजे तक सुखना झील पर जाल लगाया जाता था. 10 दिन तक इस अभियान को चलाने का फैसला लिया गया है.
लेक से निकाली गई चार प्रकार की मछलियां: पहले दिन छह प्रकार की करीब 65 क्विंटल मछलियां निकाली गई थीं, जबकि दूसरे दिन 35 क्विंटल मछलियां निकाली गई थीं. विभाग ने मछलियों के नमूनों को जांच के लिए जीव विज्ञान विभाग की टीम द्वारा सुबह तीन बजे पहुंच कर मछलियों के सैंपल लिए जाते. जिसमें उनके वजन, उम्र, बीमारी, और अन्य संबंधित जानकारी को एकत्र किया जाता. बता दे कि सुखना लेक में से चार तरह की मछलियां निकली गई, उनमें मृगल, कतला, गोल्ड कार्प और कॉमन कार्प मछली आदि हैं.
अफ्रीका में पाई जाने वाली मछली को भी बाहर निकाला:सफाई के दौरान एक मछली मिली थी, जो हाइपो टॉमस जबकि एक्वेरियम में पाई जाती है. ऐसे में इस मछली का काम एक्वेरियम को साफ रखने का होता है. यह एक तरह की कैटफिश होती है जो अफ्रीका में अधिकतम पाई जाती है. अनुमान है कि लोग अक्सर जो मछलियां नहीं पाल सकते वे अक्सर सुखना लेक मछलियों में छोड़ जाते हैं. वहीं, मेरा मानना है कि यह एक गलत तरीका है. क्योंकि पानी और पर्यावरण को देखते हुए जिन मछलियों को यहां रहना संभव है. हम उन मछलियों की नस्ल को ही यहां पर रहते हैं.
सुखना लेक को कब बनाया गया: चंडीगढ़ में दो मानव निर्मित झील बनाई गई है. जिनमें से एक सुखना लेक है. 1985 के बाद बनाई गई सुखना लेक में जहां 30-विषम प्रजातियों के रहने के लिए अनुकूल वातावरण दिया गया है. मौजूदा समय में प्रमुख भारतीय कार्प और कुछ विदेशी कार्प शामिल हैं. प्रशासन ने झील में चुनिंदा मछली पकड़ने के अधिकारों की नीलामी बंद कर दी, जिसके परिणामस्वरूप मछली की उम्र बढ़ने लगी, जो छोटी मछलियों पर निर्भर रहने लगी, जिससे छोटी नस्लों के लिए भोजन की समस्या पैदा हो गई.