चंडीगढ़ःजेबीटी शिक्षक भर्ती घोटाला मामले में दिल्ली की तिहाड़ जेल में सजा काट रहे हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला के लिए राहत की खबर आई है. दिल्ली हाईकोर्ट ने ओम प्रकाश चौटाला की रिहाई के लिए दिल्ली सरकार को जल्द विचार करने का निर्देश दिया है. हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार के पहले के उस आदेश को निरस्त कर दिया, जिसमें उसने चौटाला की समय पूर्व रिहाई की मांग को खारिज कर दिया था. हाईकोर्ट ने इस मामले पर पिछले 26 नवंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था. आपको बता दें कि ओम प्रकाश चौटाला ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर उम्र और दिव्यांगता के आधार पर जेल से रिहाई की मांग की है.
ओपी चौटाला की याचिका केंद्र सरकार की अधिसूचना का हवाला
बता दें कि ओम प्रकाश चौटाला ने केंद्र सरकार के 18 जुलाई 2018 की अधिसूचना के हवाले से दलील दी है. अधिसूचना के तहत 60 साल से ज्यादा उम्र पार कर चुके पुरुष, 70 फीसदी वाले दिव्यांग और बच्चे अगर अपनी आधी सजा काट चुके हैं तो राज्य सरकार उसकी रिहाई पर विचार कर सकती है.
तिहाड़ से रिहा हो सकते हैं ओपी चौटाला, क्लिक कर देखें वीडियो. ये भी पढ़ेंः- किसानों से मिले दिग्विजय चौटाला, बोले- ओलावृष्टि से फसल बर्बादी पर मिलेगा 100 फीसदी मुआवजा
70 फीसदी दिव्यांगता के शिकार हैं ओम प्रकाश चौटाला
ओम प्रकाश चौटाला के वकील अमित साहनी ने कहा कि चौटाला को भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत दस साल की सजा मिली है, जिसमें से सात साल की सजा उन्होंने काट ली है. अमित साहनी ने कहा कि चौटाला की उम्र 83 साल हो चुकी है और वे अप्रैल 2013 तक 60 फीसदी स्थायी दिव्यांगता है. उसके बाद जून 2013 में उन्हें पेसमेकर लगाया गया, जिसके बाद वे 70 फीसदी दिव्यांगता के शिकार हैं. इसलिए नोटिफिकेशन के मुताबिक वे दो वर्गों में रिहाई के हकदार हैं.
कैसे सलाखों के पीछे पहुंचे पूर्व सीएम ?
आपको बता दें कि साल 2000 में 3206 जूनियर अध्यापकों की भर्ती के मामले में 22 जनवरी 2013 को स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने ओम प्रकाश चौटाला, उनके बड़े बेटे अजय चौटाला और आठ और को दोषी ठहराया था और सभी को दस-दस साल की सजा सुनाई गई थी. दोषी ठहराए गए दूसरे लोगों में 44 को चार-चार साल की सजा और एक को पांच साल की सजा सुनायी गई थी.
इन सभी को धोखाधड़ी, फर्जीवाड़े, फर्जी दस्तावेजों का मूल दस्तावेजों के रूप में इस्तेमाल करने, भारतीय दंड संहिता के तहत षडयंत्र और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत अपने सरकारी पद का दुरुपयोग करने का दोषी पाया गया था.
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