चंडीगढ़: हरियाणा कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी सैलजा ने कहा है कि भाजपा सरकार की नीतियां हरियाणा के अन्नदाताओं के लिए जी का जंजाल बन गई हैं, यह सरकार किसानों को बर्बाद करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रही है. प्रदेश में धान की खरीद शुरु हुए 5 दिन बीत चुके हैं, लेकिन अभी तक प्रदेश में धान की खरीद सुचारू रूप से शुरू नहीं हो पाई है.
'आज हालात ने सरकार का भंडाफोड़ा है'
कुमारी सैलजा ने कहा कि सरकार की तरफ से किसानों की फसल के एक-एक दाना खरीदने के दावे का अनाज मंडियों में उपजे हालात ने भंडाफोड़ कर दिया है. सरकार की तरफ से साजिश के तहत कोरोना महामारी के समय जानबूझकर नई-नई शर्तें थोपकर अन्नदाताओं की मुश्किलें बढ़ाई जा रही हैं. उनका कहना है कि बिना तैयारी के सरकार ने धान की खरीद शुरू करने का ऐलान तो कर दिया, लेकिन किसानों की फसल को मंडी में कोई भी खरीद नहीं रहा है. सरकार ने
'अन्नदाताओं को भारी नुकसान झेलना पड़ा है'
जल्दबाजी में खरीद तो शुरू करने का फैसला ले लिया, लेकिन अब किसानों की फसल मंडी में पड़ी हुई खराब हो रही है. इस सरकार की जनविरोधी नीतियों के कारण राइस मिलर्स और आढ़ती हड़ताल पर हैं, जिस वजह से प्रदेश के अन्नदाताओं को भारी नुकसान झेलना पड़ा रहा है. आज इस फसल खरीद के समय किसानों को मजबूरनवश इस सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरना पड़ रहा है. कुरुक्षेत्र, अंबाला, करनाल, हिसार, रोहतक, कैथल, पानीपत, जींद समेत प्रदेश के कई हिस्सों में किसान सड़कों पर उतरने को मजबूर हो रहे हैं.
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि हजारों क्विंटल धान की फसल खुले में अनाज मंडियों के अंदर पड़ी है. मंडियों में अभी तक बारदाना भी नहीं आया है. ऐसे में किसानों को यह भी चिंता सता रही है कि मौसम खराब होने के बाद यदि बरसात हुई तो उनकी धान की फसल अनाज मंडी में बर्बाद हो जाएगी. उन्होंने कहा कि ऐसे हालात कुछ माह पूर्व हुई गेहूं की फसल खरीद में भी उत्पन्न हो गए थे, लेकिन सरकार ने इससे कोई सबक नहीं लिया.
कुमारी सैलजा ने कहा कि इसके साथ ही संबंधित खरीद एजेंसी द्वारा किसानों की फसल में अधिक नमी बताकर उनकी फसल की खरीद नहीं की जा रही है. वहीं ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन के नाम पर भी किसानों के साथ मजाक किया जा रहा है. 100 क्विंटल रजिस्ट्रेशन वाले किसान को मात्र 22 क्विंटल का ही रजिस्ट्रेशन मिल रहा है. कई किसानों को बहुत ही कम फसल लाने के मैसेज आ रहे हैं. सरकारी खरीद शुरू नहीं होने के कारण किसानी अपनी मेहनत को औने पौने दामों में बेचने को विवश हैं.