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पंचायत में 'राइट टू रिकॉल' विधेयक विधानसभा में पास, जानिए कैसे आप अपने सरपंच को हटा सकते हैं

'राइट टू रीकॉल' बिल के पास होने के बाद अब ग्रामीणों के पास ये अधिकार आ गया है कि अगर सरपंच गांव में विकास कार्य नहीं करवा रहा तो उसे बीच कार्यकाल में ही पद से हटाया भी जा सकता है.

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'राइट टू रीकॉल' ग्रामीणों को देगा सरपंचों को पदमुक्त करने का अधिकार, जानिए कैसे काम करेगा बिल?

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Published : Nov 11, 2020, 1:25 PM IST

Updated : Nov 11, 2020, 7:39 PM IST

चंडीगढ़:हरियाणा विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान कई बिल पास हुए हैं. इन बिलों में से एक अहम बिल ग्राम पंचायतों के लिए लाया गया 'राइट टू रीकॉल' बिल है. बिल के पास होने से ग्रामीणों को अधिकार मिल गया है कि वो काम ना करने वाले सरपंच को बीच कार्यकाल में ही हटा सकते हैं.

आपने कई बार ग्रामीणों को सरपंच के काम ना करने की शिकायत करते सुना होगा. पंचायत विभाग के पास अक्सर इस तरह की शिकायतें आती हैं कि सरपंच मनमानी तरीके से काम कर रहा है या फिर सरपंच विकास कार्य के नाम पर करोड़ों रुपये खा गया है, लेकिन 'राइट टू रीकॉल' बिल आने के बाद सरपंच को इस तरह के दो नबंर के काम करने से पहले दो से ज्यादा बार सोचना पड़ेगा, क्योंकि ग्रामीणों ने चाहा तो वो अपने सरपंच को कार्यकाल से पहले ही हटा सकते हैं.

कैसे काम करेगा 'राइट टू रीकॉल' ?

सरपंच को हटाने के लिए गांव के 33 प्रतिशत मतदाता अविश्वास लिखित में शिकायत संबंधित अधिकारी को देंगे. ये प्रस्ताव खंड विकास एवं पंचायत अधिकारी और सीईओ के पास जाएगा. इसके बाद ग्राम सभा की बैठक बुलाकर 2 घंटे के लिए चर्चा करवाई जाएगी. इस बैठक के तुरंत बाद गुप्त मतदान करवाया जाएगा और अगर बैठक में 67 प्रतिशत ग्रामीणों ने सरपंच के खिलाफ मतदान किया तो सरपंच पदमुक्त हो जाएगा. सरपंच चुने जाने के एक साल बाद ही इस नियम के तहत अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकेगा.

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साल में एक बार ही लाया जा सकेगा अविश्वास प्रस्ताव

अगर अविश्वास प्रस्ताव के दौरान सरपंच के विरोध में निर्धारित दो तिहाई मत नहीं डलते हैं तो आने वाले एक साल तक दोबारा अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकेगा. यानी की 'राइट टू रीकॉल' एक साल में सिर्फ एक बार ही लाया जा सकता है. अगर एक बार सरपंच के खिलाफ दो तिहाई मत नहीं डलते हैं तो ग्रामीणों को अगले साल का इंतजार करना पड़ेगा.

Last Updated : Nov 11, 2020, 7:39 PM IST

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