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हिंदी भाषा को बढ़ावा देने के लिए शब्दकोश बढ़ाने की जरूरत- प्रोफेसर गुरमीत

हम सभी अंग्रेजी भाषा को सीखने में इतने व्यस्त हो गए हैं कि कम ही लोग जानते हैं आखिर ये दिन क्यों मनाया जाता है और इस दिन का क्या महत्व है. आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं.

professor gurmit singh punjab university
professor gurmit singh punjab university

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Published : Sep 14, 2020, 8:15 AM IST

Updated : Sep 14, 2020, 9:05 AM IST

चंडीगढ़:देशभर में आज हिंदी दिवस मनाया जा रहा है.आज दुनिया भर में भले ही अंग्रेजी भाषा का चलन हो, लेकिन हम भारतीयों के लिए हिंदी भाषा की जगह कोई दूसरी भाषा नहीं ले सकती. हिंदी को राजभाषा का दर्जा 14 सितंबर, 1949 के दिन मिला था. तब से हर साल ये तारीख 'हिंदी दिवस' के रूप में मनाई जाती है.

हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है. अंग्रेजी, स्पेनिश और मंदारिन के बाद हिंदी दुनिया में चौथी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है. हिंदी दिवस पर हर साल, भारत के राष्ट्रपति भाषा के प्रति योगदान के लिए लोगों को राजभाषा पुरस्कार से सम्मानित करते हैं.

हिंदी दिवस पर पंजाब विश्वविद्यालय के प्रोफेसर से खास बातचीत

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने की थी पहल

बता दें, 1918 में हिंदी साहित्य सम्मेलन में भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए पहल की थी. गांधीजी ने हिंदी को जनमानस की भाषा भी बताया था. जब हिंदी भाषा देश राजभाषा चुनी गई थी, उस समय देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि इस दिन के महत्व देखते हुए हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाए. भारत में पहला हिंदी दिवस 14 सितंबर 1953 में मनाया गया था. तब से लेकर आजतक 14 सिंतबर को हिंदी दिवस मनाया जा रहा है.

क्या इंग्लिश हिंदी भाषा पर पड़ रही है भारी?

ये सच है कि आज भारत में अब अंग्रेजी भाषा का चलन बढ़ा है. लोगों को लगता है कि जिसे ज्यादा अंग्रेजी आती है वो ज्ञानी है. लोग उन्हें हाई प्रोफाइल समझने लगते हैं. लेकिन अच्छी बात ये है कि इनसब के बीच हिंदी लोगों के बीच तेजी से बढ़ रही है. बदलते वक्त के साथ हिंदी में भी बहुत बदलाव हुआ है. अब दूसरी भाषाओं के शब्द भी हिंदी में मिल गए हैं. कितने ही ऐसे शब्द हैं जो हिंदी, उर्दू, पुर्तगाली, फारसी के हैं जो हिंदी में शामिल हुए हैं.

इस बारे में ईटीवी भारत हरियाणा के साथ बातचीत में पंजाब यूनिवर्सिटी के हिंदी के प्रोफेसर गुरमीत सिंह ने बताया कि हिंदी के साथ सबसे बड़ी दुविधा ये रही है कि हिंदी कभी सत्ता की भाषा नहीं बन पाई. इसीलिए शायद हिंदी को वो स्थान नहीं मिल पाया जो दूसरी राजभाषा को है. हिंदी भाषा के लिए और प्रचार की जरूरत है.

दूसरी भाषाओं के शब्द भी हिंदी में शामिल

गुरमीत सिंह ने कहा कि सोशल मीडिया में भी अब हिंदी का परसेंट बढ़ने लगा है. लोग अब हिंदी में बात करते हैं. बहुत से लोग लिखने के लिए रोमन पद्धति का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन उससे कई बार शब्द का गलत अर्थ निकल आता है. अब यूनिकोड आने के बाद सोशल मीडिया में हिंदी का प्रचलन ज्यादा बढ़ा है. लोग फेसबुक और ट्विटर में भी हिंदी का प्रयोग ज्यादा कर रहे हैं. इसके अलावा मीडिया में भी हिंदी अखबार और चैनल अंग्रेजी के मुकाबले ज्यादा पसंद किए जाते हैं.

प्रोफेसर गुरमीत ने कहा कि हिंदी के प्रति भारतीय सरकारों ने काफी उदासीनता दिखाई है. अगर हम चीन, जापान, इजरायल, ताइवान जैसे देशों की बात करें तो ये सभी देश अपनी भाषा के लिए काफी गंभीर है. इन देशों में अपनी भाषा के इस्तेमाल को अनिवार्य किया गया है. जबकि भारत में ऐसा नहीं है. अगर भारत में हिंदी को लेकर प्रयास किए जाते तो हिंदी एक अलग ही स्थान पर होती.

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हिंदी अभी सुधार की बहुत जरूरत है. सबसे बड़ी कमी है हिंदी का शब्दकोश ना होगा. जो शब्दकोश है भी वो कई साल पुराना है. हिंदी का कोई नया शब्दकोश नहीं आया है. जिसकी वजह से लोगों को खासी परेशानी होती है. उदहारण के तौर पर रेल को हिंदी में लोहू पथ गामिनी कहा जाता है, लेकिन हिंदी शब्दकोश में इसका कोई जिक्र तक नहीं है. जो दूसरे शब्द हिंदी भाषा में इस्तेमाल हो रहे हैं. उनको भी शब्दकोश में अपडेट करना होगा.

Last Updated : Sep 14, 2020, 9:05 AM IST

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