चंडीगढ़: सतलुज यमुना लिंक नहर (Sutlej Yamuna link canal SYL) निर्माण को लेकर कई दशक से पंजाब और हरियाणा आमने-सामने हैं. इस मामले को लेकर सर्वोच्च अदालत में लंबे अरसे से सुनवाई चल रही है. लेकिन, हैरानी की बात यह है कि अभी तक इस मामले का कोई हल नहीं निकल सका है. आखिर एसवाईएल मुद्दे पर विवाद क्यों है आइए जानते हैं....
क्या है एसवाईएल विवाद?: सतलुज यमुना लिंक नहर को कुल लंबाई 212 किलोमीटर है. इसमें 90 किलोमीटर हरियाणा और 122 किलोमीटर पंजाब में इसका एरिया पड़ता है. 1 नवंबर 1966 को हरियाणा, पंजाब से अलग राज्य बना. उसे वक्त पंजाब रीऑर्गेनाइजेशन एक्ट के सेक्शन 78 के तहत आपसी सहमति से जल के साथ अन्य चीजों के बंटवारे की बात हुई थी. अगर आपसी सहमति से कोई फैसला न कर पाए तो केंद्र को इसमें पार्टी बनाया गया था.
1976 में पंजाब ने दी थी स्वीकृति: इस बाद हरियाणा से पंजाब ने 18 नवंबर 1976 को एक करोड़ रुपये लेकर नहर के निर्माण की स्वीकृति दी थी. बाद में इसको लेकर पंजाब ने अपना रुख बदल लिया. इसके बाद साल 1979 में हरियाणा ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. वहीं, पंजाब ने राज्य पुनर्गठन एक्ट को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी. वहीं, दिसंबर 1981 में पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के तत्कालीन सीएम ने पीएम इंदिरा गांधी की मौजूदगी में सतलुज यमुना लिंक नहर के निर्माण को लेकर समझौता किया. जिसके बाद 1982 में तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने पटियाला के कपूरी में टक लगाकर नहर के निर्माण का कार्य शुरू किया.
1985 में राजीव लोंगोवाल समझौता: इसके बाद इस मुद्दे ने कुछ ऐसा मोड़ लिया कि पंजाब की फिजा अशांत होनी शुरू हो गई. इस मामले को लेकर पहले पंजाब की क्षेत्रीय पार्टी शिरोमणि अकाली दल ने मोर्चा खोला. उसके बाद 1985 में राजीव लोंगोवाल समझौता हुआ. जिसके तहत पंजाब की नदियों के जल के बंटवारे के लिए नहर निर्माण पर सहमति जताई गई. लेकिन, 1988 में पंजाब में आतंकवाद के दौर में यह मामला खूनी संघर्ष में बदल गया. नगर निर्माण में लगे 30 मजदूरों की हत्या हुई और फिर 1990 में दो इंजीनियरों की हत्या हुई. जिसके बाद नहर निर्माण का काम बंद हो गया.