चंडीगढ़: हरियाणा समेत देश के कई हिस्सों में इन दिनों कृषि अध्यादेशों को लेकर बवाल मचा हुआ है. हरियाणा में अध्यादेशों के विरोध में प्रदर्शन कर रहे किसानों पर 10 सितम्बर को लाठियां भी भांजी गई थी. इसी बीच सरकार ने इन अध्यादेशों को कानून की शक्ल देने के लिए इसे संसद के पटल पर रख दिया है. लेकिन इस पर शुरू हुआ बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है.
इन अध्यादेशों के विरोध में आज हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के किसानों ने संसद के बाहर प्रदर्शन किया. हालांकि मंगलवार को प्रदेश सरकार ने अपने स्तर पर विरोध को खत्म करने की कोशिश जरूरी की थी, लेकिन दिल्ली में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के साथ बुलाई गई इस बैठक का भारतीय किसान यूनियन ने बहिष्कार कर दिया.
भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी ने कहा कि जब तक तीनों कृषि अध्यादेश वापस नहीं लिए जाते तब तक केंद्रीय कृषि मंत्री से कोई बात नहीं होगी. साथ ही उन्होंने आरोप लगया कि सरकार कुछ किसान नेताओं को अपने साथ लेकर कृषि अध्यादेशों को पास कराना चाहती है. वहीं दूसरी तरफ कृषि मंत्री जेपी दलाल ने भी बिना नाम लिए कुछ किसान नेताओं पर कांग्रेस समर्थक होने का आरोप लगा दिया. उन्होंने कहा कि कांग्रेस राजनीतिक स्वार्थ के चलके कुछ किसानों की आड़ में राजनीति कर रही है.
चलिए अब जान लेते हैं कि आखिर हरियाणा सहित देश के दूसरे राज्यों के किसान इन अध्यादेशों का विरोध कर क्यों रहे हैं?
1.व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश:
इस अध्यादेश में किसानों को देश में कहीं भी अपनी फसल बेचने की सुविधा मिलेगी. किसानों की फसल को कोई भी कंपनी या व्यक्ति खरीद सकता है. वहीं इस अध्यादेश में किसानों को तीन दिन के अंदर पैसे मिलने की बात कही गई है.
इस अध्यादेश से क्यों नाखुश हैं किसान?
उपरोक्त विवाद को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है. जिससे किसानों को डर है कि कंपनियों के दबाव में आकर सरकार उनके साथ विश्वासघात ना कर दे. इस बात को लेकर किसान डरे हुए हैं.
2.मुल्य आश्वासन एवं कृषि सेवा समझौता अध्यादेश:
इस अध्यादेश के तहत सरकार ने कॉन्ट्रैक्ट खेती को बढ़ावा देने की बात कही है.